अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता लिए कश्मीर की घाटी को विश्व का स्वर्ग कहा जाता है। पीर पंजाल पर्वत मालाओं एवं पश्चिम हिमाचल की घाटियों के बीच में भारत का माथा के नाम से भी जाना जाता है, देश का वह राज्य है जम्मू एवं कश्मीर। इसके पश्चिमी दिशा में पाकिस्तान तथा उत्तरी दिशा में लद्दाख क्षेत्र है। श्रीनगर जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी तथा जम्मू शीतकालीन राजधानी है।
श्रीनगर में पहला दिन :
हम सुबह 10 बजे विमान यात्रा से श्रीनगर विमान पत्तन पहुंचे। हम वहां से सीधे प्री-पेड टैक्सी लेकर अपने अतिथि गृह की ओर जाते समय रास्ते में शहर का नजारा देख रहे थे। हरियाली, पेड चौ़ड़े रास्ते और मकानों की शैली आदि दिल को छू रहे थे। फिर अतिथि गृह पहुंचने के बाद वहां दोपहर का भोजन लेकर डल झील पहुंचे। वहां घाट बना हुआ है और शिकारों तथा उनके चालकों का जमघट है। शिकारा सवारी की कोई निश्चित दर हमें दिखाई नहीं दी। हमने दो तीन शिकारा वालों से बात की तथा समय अवधि के हिसाब से हमें अलग-अलग दरें बताई गईं और उसमें भी सौदेबाजी करनी पड़ती है। हमने एक शिकारा (सजावटी नाव) में पूरे परिवार के साथ दो घण्टे सैर की। सैर करते गई समय हमने देखा बहुत सारे शिकारों में तो अपनी चलती फिरती दुकानें भी हैं, जो खाने-पीने की चीजें जैसे कहवा (कश्मीरी ड्राइ फ्रूट की चाय), भुना हुआ भुट्टा, महिलाओं के सजने सँवरने का सामान, कश्मीरी शॉल आदि मौजूद थे। सिर्फ इतना ही नहीं, यहां बड़ी मात्रा में, एक दो दिन ठहरने के लिए भी आवास हाउस बोट मिलते हैं। उनमें अपूर्व सजावट एवं रेस्तरां आदि मौजूद होने से वह किसी होटल से कम नहीं है।
हमारे शिकारा चालक ने हमें एक हाउस बोट दिखाई और बताया कि वहां पर मिशन कश्मीर फिल्म के बुमरो बुमरो गाने की शूटिंग हुई थी। कुछ हाउस बोट ने दुकानों का रूप ले लिया है। आप वहां से कश्मीरी कपड़े, उपहार, महिला उपयोगी प्रसाधन का सामान आदि खरीद सकते है। शिकारा चालक ने बताया कि यहां स्थानीय लोगों द्वारा सुबह-सुबह नावों पर सब्जी बाजार लगाया जाता है।
इसमें कोई सन्देह नही कि शिकारा एवं हाउस बोट एवं डल झील स्थानीय लोगों की एक लाइफ लाइन है। हाउस बोट में रात बिताने का अलग अंदाज खान-पान की सुविधाएं तथा झील में मछली पकड़ने का साधन आदि भी मौजूद है। हमने करीब दो घण्टे शिकारा में बिताने के बाद अपने घाट पर आ गए जहां हमारा टैक्सी चालक इन्तजार कर रहा था।
हम वहां से सीधे ही डल झील की उत्तरी दिशा में स्थित सुप्रसिद्ध हजरत बल मकबरा पहुंचे। यह मस्जिद 17वीं सदी में बनाई गई थी। मुस्लिमों का विशवास है कि यहां पैगम्बर हजरत मोहम्मद के बाल रखें हैं। इस पवित्र स्थान की संरचना सफेद संगमरमर से बनी है तथा इसका गुम्बद इस मस्जिद की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है। यहां दर्शन करके बाहर वाली गली में मिठाई की दुकानें हैं, जहां विशिष्ट खस्ता वाली बड़ी-बड़ी पूरियां व गर्म गर्म हलवे का आनन्द लिया और लौटते समय हम कश्मीर विश्वविधालय परिसर में गए और इसके जगह जगह हरियाली भरे लॉन से लगा कि जैसे किसी ने हरे रंग की कालीन बिछा दी हो।
श्रीनगर में दूसरा दिन :
हम सुबह अतिथि गृह से जलपान करके श्रीनगर के विभिन्न सुप्रसिद्ध बागों के दर्शन के लिए निकले। यह सारे बाग जबरवन पहाड़ी के ढलान और झील के बीच में बनाया गये है।
1) परिमहल : यह बाग शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह ने बनवाया था। इस बाग से श्रीनगर शहर का खूबसुरत नजारा दिखाई देता है। यह बाग बहुत ही अच्छा है यह महल बहुमंजलीय है और इसकी देखरेख बहुत ही सुसज्जित ढंग से की जा रही है। इसकी लॉन की हरी-हरी घास और विभिन्न फूलों-पौधों ने सारे शहर का नजारा एक अति आकर्षक बना दिया है। यह फोटोग्राफी के लिए बहुत ही उत्तम जगह है।
2) चश्म ए शाही महल : यह बाग सम्राट शाहजहां ने 1632 ई. में अपने बड़े बेटे दारा शिकोह को उपहार देने के लिए बनवाया था। इस बाग को फारसी शैली की रूपरेखा से बनाया है। इस बाग की खूबी प्राकृतिक झरना है जो विभिन्न टैरेस से होकर गुजरता है और उसमें कश्मीरी ‘हट’ भी बनाया गया है। वहीं से प्राकृतिक झरने का पानी निकलकर एक बड़े तालाब में आता है और उसी ‘झोपड़ी’ के केन्द्र में बड़ा सा फव्वारा लगा हुआ है जो उसकी सुन्दरता को और निखार देता है
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यह बाग एक अपूर्व तथा अविस्मरणीय है।
3) नेहरू बॉटेनिकल गार्डन :
यह बाग पहाड़ों के नीचे ढलान पर बहुत बड़े इलाके में करीब 80 हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है। यह बाग नेहरू जी की यादगार में 1969 में बनाया गया इसके बीच में एक झील है और एक बॉटेनिकल अनुसंधान स्टेशन भी है। यहां के झरनों से पानी का बहाव हरी-हरी कारपेट घासे विभिन्न तरह के फल व फूलों के बगीचे इस बाग को एक स्वर्ग बना दिया है। टिकट काउन्टर पर पता चला कि यहां बहुत सारी हिन्दी फिल्मों तथा देश की अन्य भाषाओं की फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
4) निशात बाग :
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यह बाग सिढीनुमा स्टाइल में मुगलबाग है इसे द्वितीय बड़े आकार का एक मुगल गार्डन कहा जाता है, जो 46 एकड़ में फैला हुआ है। इसे 1633 में नूरजहां के बड़े भाई आशिफ खान ने विभिन्न राशि चक्र (Zodiac sign) के अनुसार बनवाया था। मगर इसकी स्थिति को देखते हुए लोग इसे ‘गार्डन ऑफ डिलाइट्स’ कहते हैं। वैसे भी निशात बाग का अर्थ ‘खुशियों का बगीचा’ ही है।
5) शालीमार :
यह भी एक मुगल बाग है जो मुगल सम्राट जहाँगीर ने अपनी पत्नी नूरजहां के लिए 1619 में बनवाया था। इस बाग को श्रीनगर का ताज कहा जाता है। यह बाग पूर्णतः फारसी शैली में बनाया गया है। यह बाग तीन स्तरों (टियर्स) में बंटा हुआ है और इसका जल स्त्रोत डल झील से जुड़ा हुआ है। इसका क्षेत्रफल करीब 31 एकड़ है। इस बाग के पहले स्तर पर अमीर खुसरो की पंक्ति लिखी हुई है इस पंक्ति का अंग्रेजी में “If there is a paradise on earth, it is here, it is here” है, अर्थात “अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है”।
6) शंकराचार्य मंदिर :
हम उपर वर्णित सारे बाग घुमकर सीधे शंकराचार्य मंदिर की ओर चल पड़े यह जबरवन पर्वत मालाओं पर शंकराचार्य पर्वत पर अवस्थित है। यह श्रीनगर घाटी श्रीनगर मैदानी इलाके से 300 मी. ऊपरी ऊंचाई पर है और समुद्र तल से 1892 मी. ऊपर है। इस मंदिर को ज्योतिश्वर मंदिर भी कहते है। क्योंकि इसके सबसे ऊपर शिव जी का मंदिर है। मंदिर के नीचे तक गाड़ी जाती है और फिर वहां से 240 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचा जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर 200 ई. पूर्व बनाया गया था। कहा जाता है यह मंदिर आदि शंकरचार्य ने 8वीं सदी में दर्शन किए और काफी दिनों तक रहें। तब से इसका नाम शंकराचार्य पर्वत पड़ा बाद में मैसूर के महाराजा 1925 में यहां आये थे और दर्शन करके एक मोटी राशि मंदिर के नाम पर दान कर गए थे जिसके पैसों से बिजली का खर्च चलता है। इस पावन मंदिर में महऋषि श्री अरबिन्दो तथा आचार्य विनोबा भावे भी दर्शन करने आ चुके हैं। सूरज अस्त होने वाला था तथा मंदिर में प्रवेश का समय समाप्त हो रहा था, हमने 240 सीढियां चढकर शिव जी का नाम लेकर मंदिर पहुंचे वहां काफी शिव भक्त पूजा अर्चना कर रहें थे तथा काफी दर्शक भी उपस्थित थे। दिन भर बाग में घूमते-घूमते तथा 240 सीढियां चढाई करने के बाद हमारा शरीर जवाब दे रहा था। लेकिन ज्योतिश्वर लिंग दर्शन के बाद ऐसे महसूस हो रहा था जैसे सारी थकावट दूर हो गई। वहां से श्रीनगर शहर का नजारा दिखाई दे रहा था। वहां पेड़ो की छाव में बैठने से तथा खुली ठण्डी हवा से हमारी सारी थकावट छूमून्तर हो गई और हम आराम से नीचे उतरे तब तक सूरज अस्त हो रहा था और नीचे हमारा गाड़ी चालक इन्तजार भी कर रहा था। हमने गाड़ी चालक से किसी अच्छे रेस्तरां में, जहां पूर्णतः कश्मीरी पकवान मिलते हो, ले चलने को कहा। चालक हमें एक अच्छे रेस्तरां में ले गया जहां हमने रात का भोजन किया और विश्राम गृह में पहुंचे। श्रीनगर शहर में के और भी बहुत सी चीजें देखने के लायक है जैसे हरि पर्वत, गुरूद्वारे, हनुमान मंदिर आदि लेकिन समय की कमी के चलते हम देख नहीं पाए।
कश्मीर में तीसरा दिन :
श्रीनगर के बाहर आकर्षण के मुख्य केन्द्रों में पहलगांव, गुलमर्ग, सोनमर्ग, दूधपथरी और वूलर झील हैं।
तीसरे दिन हम सुबह नाश्ता कर पहलगांव की ओर निकले यह एक हिल स्टेशन है जो अनन्तनाग जिले में आता है। यही से चन्दनबडी होते हुये अमरनाथ यात्रा की शुरूआत होती है। यह श्रीनगर से करीब 92 कि.मी. है। श्रीनगर से पहलगांव तक बहुत ही अच्छा सड़क मार्ग है और राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। उसी रास्ते में पम्पोर है, जो पुलवामा जिले में आता है। पम्पोर विश्वविख्यात केसर की खेती के लिए जाना जाता है और पम्पोर में दोनो साइड केसर की खेती होती है। इसलिए वहां पर रोड के दोनों साइड काफी दुकानें हैं जो केसर तथा ड्राइ फूड से भरी हुई है। उसके अलावा और आगे हम बिजबेहरा शहर से गुजर रहे थे (इस क्षेत्र में सबसे पुराने चिनार के वृक्ष है) और दोनों ओर क्रिकेट बल्ले की काफी फैक्ट्रियां नजर आई जो वहां के विलो पेड की लकड़ी से बनता है। रास्ते में हमने कहवा का आनन्द लेकर करीब चार घण्टे में पहलगांव पहुंचे। रास्ते के दोनों ओर सेब के बाग तथा अखरोट के पेड़ो का नजारा देखा और पहलगांव के थोडी देर पहले कल-कल करती लिद्दर नदी का बहाव देखा। हम जून महीने के अंतिम सप्ताह में वहां थे अतः बाबा अमरनाथ यात्रा की शुरूआती तैयारी हो रही थी। पहलगांव शहर के बाहर तथा अन्दर भी विभिन्न जगह अस्थायी कैम्प लग रहे थे तथा लंगर का सामान ट्रकों से भरकर आ रहा था।
हमें कार चालक ने पहलगांव शहर में कार पार्किंग में छोड दिया और वहां उतरते ही घोड़े चलाने वाले आदमियों की अफरा तफरी सी मच गई हर घोड़ा चालक अपनी तरफ बुला रहा था। यहां की समिति द्वारा निर्धारित घुडसवारी के रेट के अनुसार चार घोड़े हमने लिए जो हमें मिनी स्वीट्जरलैण्ड (वैशारण घाटी) लेकर जायेंगे और वापस लायेंगे यह घाटी मुख्य मार्ग से करीब पांच कि.मी. ऊपर है। हमारे चार घोडों के साथ दो चालक थे, जो कीचड़ भरी पगडंडियों, संकीर्ण मार्ग और पत्थरों के बीच से हमें लेकर ऊपर की और चढते गए। यह एक रोमांचकारी सफर था और डर भी लग रहा था कहीं ढलान में ना गिर जाएं। इतने संकीर्ण रास्ते से घोडो में उपर सवारी ले जा रहे थे तथा उपर से ला रहे थे फिर भी घोड़ो में कोई टकराव नहीं होता था और प्यार से अपना रास्ता तय करते हुए सवारियां ले जा रहे थे। एक घण्टा सवारी के बाद हम वैशारण घाटी यानि भारत के मिनी स्वीट्जरलैण्ड पहुंचे। उसमें प्रवेश के लिए टिकट लिया और फिर अन्दर गए यहां पूर्णतः हरियाली है। चीड़, पाइन एवं देवदर के लम्बी पेड़ों की कतारों से ऐसे लग रहा था जैसे कि वह हमारा स्वागत कर रहे हों।
क्या प्रकृति की देन है जो चारो तरफ ऊंचे-ऊंचे पेड़ो से घिरा हुआ और बीच में हरी घास का खुला मैदान (मिडोव) है। यह जगह काफी बडे़ क्षेत्र में फैली हुई है। इसकी सुन्दरता को कभी भुलाया नही जा सकता है। हम यहां काफी चहल कदमी की तथा फोटोग्राफी भी की। यहां बहुत सारी स्थानीय महिलाएं भेड़ और खरगोश का बच्चा लेकर घूम रही थीं ताकि उनको लेकर कोई फोटोग्राफी करें और उन्हें कुछ पैसे भी मिल जाएं। इसके अलावा कुछ फेरी वाले कश्मीरी शॉल भी बेच रहे थे। वहां खान-पान की कुछ दुकाने थी जहां गर्म मैग्गी, पराठें, चाय तथा कश्मीरी पुलाव मिल रहा था और जिसकी दर नीचे बाजार से तीन गुना अधिक थी। हमने करीब दो घण्टे बिताए तथा प्रकृति के मनोरम दृश्य का आनंद लेने के बाद हम वहां से लौटे, जहां हमारी घोडा सवारी के चालक इंतजार कर रहे थे। अब घोडे पर चढ़ते समय मन में डर लग रहा था क्योंकि फिर वही संकीर्ण पहाड़ी रास्ता, कही गिर तो नही जाएंगे। लेकिन दूसरा कोई विकल्प भी नही था। घोडो ने अपनी मंथर गति से नीचे पहुंचा दिया। हमने नीचे उतरने के बाद ईश्वर को धन्यवाद दिया कि हम सही सलामत नीचे आ गए। यह एक रोमांचकारी यात्रा थी और लग रहा था जीवन में सिर्फ एक बार नहीं, बारंबार “वैशारण घाटी” आएंगे जो वास्तविक में मिनी स्वीट्जरलैण्ड है।
वहां से लौटने के बाद हम स्थानीय टैक्सी से बेताब घाटी गये यहां पर हिन्दी फिल्म बेताब की शूटिंग हुई थी उसके बाद इस घाटी का नाम बेताब घाटी पड़ गया है। यह घाटी पहलगांव शहर से करीब 15 कि.मी. दूर है। यह घाटी पहाडों के नीचे लिद्दर नदी के तट पर है और पेड़ों की कतारें, नदी के तट पर बैठने के लिए सजावटी कुर्सियां हरा भरा घास का मैदान वास्तव में एक अनोखा स्थान है जहां आप सकून से नदी के तट पर बैठकर शुद्ध हवा तथा नदी का शुद्ध जल पीकर शरीर को तरोताजा कर सकते हैं। यह पिकनिक स्पॉट होने के नाते काफी भीड़ थी लेकिन इतने बड़े इलाके से पता नहीं चल रहा था। हम यहां करीब एक घण्टा बीता कर सीधे पहलगांव के टैक्सी स्टैण्ड आए और अपनी किराए वाली कार से श्रीनगर लौट चले।
कश्मीर में चौथा दिन :
हम चौथे दिन सुबह-सुबह दूधपथरी की ओर चल पडे। यह बडगाँव जिले में खाँ-साहब तहसिल में श्रीनगर शहर से करीब 42 कि.मी. दूरी पर है। यह समुद्रतल से 2730 मी. ऊंचाई पर कटोरी आकार की घाटी है और हिमालय की पीरपंजाल पर्वत मालाओं के क्षेत्र में आती है। यह एक हिल स्टेशन तथा पिकनिक स्थल है। वहां पहुंचने के करीब 10 कि.मी. से इसका प्राकृतिक दृश्य मन को छू लेता है। यहां चीड़, पाइन की लम्बी-लम्बी पेड़ों की कतारें और ढलान में हरी भरी घासों से ढकी जमीन तथा बीच-बीच में बहतें छोटे-छोटे नाले, कुल मिलाकर इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। रास्ते में विशेषकर स्थानीय महिलाएं मक्कई की रोटी और कहवा और साथ में अखरोट भी बेच रही थीं। हम करीब दो घण्टे में वहां पहुंचे और गाड़ी से उतरकर पहाड़ी वादियों की सैर करने के लिए निकले है। उसमें पैदल यात्रा अथवा घोडे सवारी से अन्दर जाने के लिए छूट है।
हम चहल कदमी करते हुए उपर चढते गये और प्राकृतिक नजारे का उपभोग कर रहे थे दूर से पहाडी शिखर से बर्फ गला हुआ पानी नाला बनकर नीचे ढलान की ओर आ रहा था और दूर से ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने दूध का डिब्बा खाली कर दिया है। सफेद ऐसा पानी नाला बनकर हरी भरी घासों के मैदान की तरफ आ रहा था। यह घाटी बहुत ही सुन्दर है और पूरे इलाके में फैली हुई है। मानो या ना मानों यह स्वीटजरलैण्ड की वादियों से किसी से कम नही हमने पहलगाँव कि मिनी स्वीटजरलैण्ड के दर्शन किए लेकिन यहां चारों तरफ मिनी स्वीटजरलैण्ड लगता है। यह घाटी सैलानियों में अभी तक बहुत लोकप्रिय नहीं हो पाई है। इसलिए, यहां पर स्थानीय लोंगो की ही भीड है जो सप्ताह के अन्त में पिकनिक तथा समय बिताने आ जाते है हमने यहां करीब चार घण्टे बिताए और जमकर फोटाग्राफी की वहां से लौटते समय एक रेस्तरां में दोपहर का भोजन किया और शाम को श्रीनगर लौट आए। यह घाटी वास्तविक में एक प्राकृतिक सुन्दर घाटी है और एक बार दर्शन करने के बाद बारम्बार जाने के लिए प्रेरित करता है।
हम पांचवे दिन श्रीनगर से विमान सेवा द्वारा अपना गंतव्य स्थल पहुंचे और अन्तिम में श्रीनगर शहर तथा आस-पास की वादियों पर चार पंक्तियों के साथ समाप्त कराना चाहेंगें।
ये कश्मीर की वादियां, डल झील में शिकारों की किश्तियां l
याद रही चिनार के पेड़ों की छाया, झेलम नदी की खूबियां ll
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*प्रधान तकनीकी अधिकारी, (सेवानिवृत्त)
सीएसआईआर- केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान,रुड़की
सभी तस्वीरें लेखक के अपने कैमरे से ली गई हैं।