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मैहर : सतना (मध्यप्रदेश)

आस्थाै और विरासत की नगरी

* आशा बेन पटेल

पिछले वर्ष लॉकडाउन समाप्‍त होने पर मन में आया कि बहुत समय से कहीं जा नहीं पाए चलो कहीं घूम आते हैं। बहुत नाम सुना था मैहर माता का, बस क्‍या था, रेल का रिजर्वेशन कराया और चल पड़े मैहर (सतना) के लिए।

नवरात्री का पहला दिन था। हम रोपवे से मंदिर में पहुंचे और मां शारदा का नवरात्री के पहले दिन की विशेष श्रृंगार और आरती में शामिल हुए। प्रशासन से दिशा निर्देश मिलने के बाद इस बार मां शारदा के धाम मैहर में खास इंतजाम किए गए थे। महामारी के बाद मंदिर खुलने पर पुलिस और प्रशासन ने पहले से ही तैयारियां कर रखी थी। सभी श्रद्धालुओं को चेहरे पर मास्क लगाने और हाथ सैनिटाइज करने के निर्देश दिए जा रहे थे। साथ ही प्रशाद नहीं चढ़ाने और एक विशेष पात्र में रखने के लिए भी कहा जा रहा था।

सुबह चार बजे से ही लाइन में लगे श्रद्धालुओं को एक बार में छ:-छ: की संख्‍या में मंदिर में भेजा जा रहा था लेकिन रुकने नहीं दिया जा रहा था। ऐसा प्रबंध देख कर एक बुजुर्ग ने बताया कि वह साल में दो बार हाजिरी लगाते हैं लेकिन ऐसी प्रबंध-व्‍यवस्‍था नहीं देखी, यह आगे भी जारी रहनी चाहिए। सीढ़ियों से आने वाले यात्रियों के लिए अलग व्‍यवस्‍था की गई थी। धीरे धीरे सभी ने आदिशक्ति मां शारदा के दर्शन किए।

त्रिकुटा पहाड़ियों पर शारदा देवी मंदिर,मैहर

मुख्‍य मंदिर शारदा माता का है। मंदिर के परिसर में और भी देवी देवता विराजमान हैं, हमने भी सभी के दर्शन किए और मंदिर की रेलिंग्‍स से मैहर के चारों तरफ खूबसूरत पहाड़ों का नजारा देख मन प्रफुल्लित हो गया और मंदिर आकर बहुत अच्छा लगा।

शहर से मात्र पांच कि.मी. दूर,  मैहर नगरी में नवरात्री के समय सबसे ज्यादा भक्तगण पहुंचते है मंदिर में विशेष कर नवरात्री के समय बहुत भीड़ रहती है। इन दिनों यहां पर मेला भरता है। वैसे भी, यहां पर हमेशा ही मेले जैसा ही माहौल रहता है। मां शारदा के दर्शन के लिए हर मौसम में भक्तों की लम्बी कतार लगी रहती है।

कैमूर तथा विंध्य पर्वतमाला पर्वत श्रेणियों की गोद में मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर में 600 फीट की उंचाई पर त्रिकूट पर्वत पर, प्रकृति की गोद में समाया है मां शारदा देवी का मंदिर। नैसर्गिक रूप से समृद्ध श्रृंखलाओं के बीच अठखेलियां करती तमसा  नदी के किनारे त्रिकूट पहाड़ी पर अवस्थित मां शारदा का मंदिर पूरे देश में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। पूरे देश से ही भक्तगण यहां माता के दर्शन करने आते हैं। मंदिर तक जाने के लिए लगभग 1065 सीढ़ियां बनी हुई हैं, जो पहाड़ी की चोटी पर मंदिर तक जाती हैं। चढ़ाई करने में असमर्थ तीर्थयात्रियों के लिए एक रोपवे बना है। ज्ञात हुआ कि यात्रियों की सुविधा और मंदिर तक पहुंचने में आसानी के लिए सरकार ने कुछ समय पहले ही रोपवे बनवाया है। जैसे-जैसे आप ऊंचाई पर चढ़ते हैं, इसकी हरियाली छटा मंत्रमुग्‍ध कर देती है। मंदिर से मैहर के चारों तरफ का दृश्य बहुत अच्छा लगता है। दूर तक फैले खूबसूरत पहाड़ देखने के लिए मिलते हैं।

यहां कुल 1065 सीढियां है जो क्रमशः चार भागों में विभाजित है :-

पहला भाग : नीचे से सीढ़ियों के पहले खंड में 485 सीढियां हैं जिसे यात्री बड़े  आसानी  से चढ़  पाते हैं,

दूसरा भाग : इस खंड में 232 सीढियां हैं।

तीसरा भाग :  इस भाग में 152 सीढियां पड़ती है।

चौथा भाग  : अंतिम भाग में 196 सीढियां हैं और इस भाग को चढ़ने में  थोड़ा ज्यादा

थकान महसूस होती है क्योंकि अंतिम शिखर तक बिलकुल खड़ी सीढियां है। इतनी सीढियां चढ़ने के बाद भी श्रद्धालुओं को थकान महसूस नहीं होती क्योंकि वह तो देवी दर्शन के नाम और ध्‍यान में लीन होते है।

सरकार द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए सीढ़ियों के किनारे जगह-जगह पर बैठने और आराम करने के लिए बैंच और साथ ही कुछ दूरी पर चाय-पान की उत्तम व्यवस्‍था की गई है। दर्शनार्थियों को धूप और बारिश से बचाने के लिए सरकार की ओर से मैहर की सीढ़ियों के ऊपर छतें बनावाई गई हैं।

यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर ‘नरसिंह पीठ’ के नाम से भी विख्यात है। पुरातत्‍वविदों के अनुसार, मां शारदा के निकट ही में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है। देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल देश के लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है माता का यह मंदिर धार्मिक तथा ऐतिहासिक है।

मां शारदा की प्रतिमा के निकट भगवान नरसिंह की एक प्रतिमा है जिसके पास में एक प्राचीन शिलालेख है। इस शिलालेख पर उल्‍लेख है कि नपुला देव द्वारा शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष पर 14 मंगलवार, विक्रम संवत् 559 अर्थात 502 ई. को स्थापित’।

मैहर के बारे में …. हिन्दू पौराणिक तथ्यों के अनुसार भगवान शिव के तांडव करते समय माता सती के शव के अंग और आभूषण जिस-जिस स्थान में गिरे थे, वह सभी शक्ति पीठ कहलाए।  मैहर के विषय में ग्रंथों में उल्‍लेख मिलता है और यह किंवदंती भी है कि भगवान शिव ने मृत देवी सती के शरीर को ले जाते समय मां सती ने अपने गले का ‘हार’ यहां गिरा दिया था, जिससे इस स्थान का नाम ‘माई का हार’ पड़ा जो कालांतर में बदलते हुए ‘मैहर’ हो गया। आस्‍था की दृष्टि भक्‍तगण इस शक्ति पीठ को मैहर धाम कहते हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में मैहर मंदिर की खोज आल्हा और ऊदल नाम के दो योद्धाओं ने की थी।

मंदिर खुलने से पहले हो जाता है माँ शारदा का श्रृंगार :   कई बार मैहर धाम में अदृश्‍य घटनाएं हो चुकी है जो बिलकुल अद्भुत रही है, संध्‍या आरती के बाद दरबार बंद होने के बाद भी जब पुजारी ने सुबह द्वार खोला तो उसे मैहर देवी शारदा माता का श्रृंगार और साथ में अर्पण किये हुए पुष्प मिले हैं।  कहते है की हर सुबह मंदिर खुलने के पहले ही मां शारदा के श्रृंगार अपने आप ही हो जाते है। यह मैहर मंदिर का चमत्कार बिलकुल सत्य है। लोगों का विश्‍वास है कि अमरत्‍व का वरदान पा चुके आल्हा अदृश्य रूप में देवी की पूजा अर्चना के लिए शारदा माई के दरबार (मंदिर) में आते हैं। आज भी अर्धरात्रि के बाद, जब मंदिर के कपाट बंद रहते है, अगले दिन माता की मूर्ति का श्रृंगार और उस पर अर्पित पुष्प पाए गए हैं।

 स्थानीय किवदंतियों में कहा जाता है कि दो योद्धा आल्हा और ऊदल इस जगह के साथ जुड़े रहे हैं। दोनों सगे भाई मां शारदे के अनुयायी थे। किवदंती है कि आल्हा ने जंगलो के बीच खोज करने के बाद 12 वर्ष तक अटूट तपस्या की और तब देवी ने इनसे प्रसन्न होकर अपने दैवीय रूप में दर्शन दिए थे और उन्हें अमरत्‍व का वरदान दिया। तब से ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल अमर हैं। कहा जाता है कि आल्हा और ऊदल ने ही दूरदराज के जंगल में पर्वत पर यात्रा और सबसे पहले देवी की आराधना की। वे देवी माँ को ‘शारदा माई’ कहते थे और यह स्‍थान ‘शारदा माई’ लोकप्रिय हो गया। लोगों का विश्‍वास है कि अमरत्‍व का वरदान पा चुके आल्हा ही अदृश्य रूप में, आज भी अर्धरात्रि के बाद, जब मंदिर के कपाट बंद रहते है, देवी की पूजा अर्चना के लिए शारदा माई के दरबार (मंदिर) में आते हैं। कुछ खोजी पत्रकारों और चैनलों ने इसे सत्‍यापित किया है, जबकि वहां रात्रि में उन्‍होंने पहरे लगा रखे थे।

मैहर रोपवे :   चूंकि मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर 367 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और वहां तक जाने के लिए 1063 सीढि़यां हैं। आज भी बहुत से यात्री और साहसिक पर्यटक इन्‍हीं सीढि़यों से जाते हैं।  लेकिन कुछ भक्तों (विशेषकर बुजुर्गों) को चढ़ाई करने और गंतव्य तक पहुंचने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता था। इसलिए तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए रोपवे शुरू किया गया था। आज रोपवे को ही सबसे आदर्श माध्‍यम माना जाता है। एक सिंगल केबल कार में एक बार में छ: लोग बैठ सकते हैं। रोपवे का दोनों ओर का टिकट 110 रुपए था। किफायती और सुविधाजनक होने के अलावा, रोपवे एक रोमांचकारी अनुभव भी है, जो नीचे शहर के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है।

चूंकि रोपवे को भक्तों की मंदिर तक पहुंचने की सुविधा के लिए बनवाया गया है, इसलिए मंदिर में आरती और पूजा के समय के आधार पर इसमें परिवर्तन किया जाता है। आमतौर पर यह सुबह, आरती के समय (गर्मियों में लगभग 5:00 बजे और सर्दियों में 6:30 बजे) आरम्‍भ होता है और शाम को करीब 7:15 बजे, संध्या आरती के बाद बंद होता है। यात्रियों के लिए रोपवे सुविधा दिन भर लगातार चालू रहती है। त्यौहारों, विशेष अवसरों और विशेष दिनों के दौरान समय में बदलाव हो सकता है।

मैहर जाने का सबसे अच्छा समय: 

मैहर धाम  हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र नगरी है जहां सम्पूर्ण भारत से लाखों श्रृद्धालु प्रतिदिन मां शारदे के दर्शन और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्‍त करने आते है। एक धार्मिक स्थान होने के अलावा भी, संगीत की विरासत और प्राकृतिक नजारों के लिए किसी भी मौसम में मैहर आया जा सकता है। लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा लोग अक्‍तूबर में नवरात्री के समय देवी-दर्शन  हेतु आते है। इसीलिए यह समय मैहर जाने का सबसे उपयुक्त माना जाता है।

आल्हा ऊदल का मंदिर:   आम तौर जिज्ञासा होती है कि आल्हा ऊदल कौन थे? बनाफल बंश के चंद्रवंशी क्षत्रीय समुदाय में जन्मे आल्हा और ऊदल 12वीं इस्‍वी में वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की गाथा पूरे मध्‍य भारत में विख्यात है कि इन्होने अपने पिता के साथ हुए अन्याय और उनकी मृत्यु का बदला लेने हेतु 52 युद्धों में विजय प्राप्त की थी।   आल्हा ऊदल का मंदिर या अखाड़ा मैहर में स्थित एक प्रसिद्ध जगह है और यह जगह जंगल के बीच में स्थित है। आप इस जगह पर जा सकते हैं। आपको यहां पर एक सरोवर भी देखने के लिए मिलता है, जहां पर खूबसूरत कमल के फूल लगे रहते हैं। यहां आने पर हम लोगों को बहुत अच्छा लगा।

आल्हा के नाम पर एक मंदिर और ‘आल्हा तालाब’ है। पर्यटक तालाब के पीछे पहाड़ी देख सकते हैं। हाल ही में, तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए इस तालाब और आसपास के क्षेत्र का पुनर्निमाण करा कर साफ-सुथरा किया गया है। यहां से लगभग एक कि.मी. की दूरी पर आल्हा – उदल का अखाड़ा है, जहां वह कुश्ती का अभ्यास करते थे। मंदिर से आल्हा – उदल का तालाब देखा जा सकता है जो नीचे के परिवेश का विहंगम दृश्य भी देता है। पहाड़ियों और हरी-भरी वनस्पतियों के बीच कुछ शांतिपूर्ण समय बिताने के लिए आल्हा तालाब भी जाया जा सकता है। मंदिर के पीछे एक अखाड़ा भी है। भगवान शिव को समर्पित गोला मठ मंदिर, बडीमाई मंदिर, ऑयला मंदिर, पन्निखोह जलप्रपात; पूर्वा जलप्रपात आदि मैहर के कुछ अन्य आकर्षण हैं।

वेंकटेश मंदिर :

मुख्तारगंज के पास स्थित, वेंकटेश मंदिर का निर्माण 1876 में किया गया था। दक्षिण भारतीय शैली के आधार पर बनाए गए मंदिर के बारे में उल्‍लेख है कि इसके निर्माण में लगभग 49 वर्ष लगे और दक्षिण भारत से शिल्‍पकार और कारीगर बुलाए गए थे। यह लाल पत्थर से बना है और तालाब के पानी पर उठती लहरें मनमोहक है। शासन की ओर से मंदिर के साथ चार दिवारी करके एक पार्क विकसित किया गया है। यहां आकर पर्यटक गहन शांति का अनुभव करता है। यहां होने वाले धार्मिक आयोजनों में गुरु पूर्णिमा, झूलन महोत्सव, नरसिंह चतुर्दशी, जन्माष्टमी, रामनवमी, शरद पूर्णिमा और बहुत कुछ शामिल हैं। राजा रणदमन सिंह द्वारा स्थापित यह मंदिर विंध्य क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।

नीलकंठ मंदिर आश्रम:   नीलकंठ मंदिर और आश्रम मैहर में स्थित एक प्रमुख स्‍थल है। यह मैहर से करीब 15 कि.मी. दूर है। नीलकंड आश्रम में नीलकंठ महाराज ने तपस्या की थी। इसलिए आश्रम को नीलकंठ मंदिर और आश्रम के नाम से जाना जाता है। आप उनके बारे में भी यहां पर जान सकते हैं। यहां पर आपको बरसात के समय झरना भी देखने के लिए मिलता है, जो बहुत खूबसूरत लगता है। साथ ही श्री राधे कृष्ण जी का एक सुन्‍दर मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां आने के लिए कार या ऑटो मिल जाते हैं।

 रामवन :  रींवा रोड पर स्थित रामवन मंदिरों के प्राचीन अवशेषों का वास है। मुख्य मंदिरों में से एक हनुमान मंदिर है। बच्चों के लिए हरी-भरी हरियाली आमंत्रित कर रही है। आध्यात्मिक शांत वातावरण और सुव्यवस्थित उद्यान परिसर इसे सतना के सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थलों में से एक बनाते हैं। रामवन तुलसी संग्रहालय में प्राचीन मंदिरों की मूर्तियां संरक्षित हैं, जो पिछली पीढ़ियों की कलात्मकता और भक्ति को एक नया आयाम देते हैं।

रामवन तुलसी संग्रहालय

जगतदेव तालाब, सतना 

जगतदेव तालाब या जगत देव झील सतना में मानव निर्मित जलाशय है। प्रसिद्ध शिव मंदिर झील के किनारे स्थित है। सतना तथा मैहर आने वाले पर्यटक इसे भी देखने आते हैं। यहां 450 साल पुराने सत्यनारायण मंदिर के अलावा, पशुपति नाथ मंदिर, श्री रघुवीर मंदिर, डाली बाबा, राम जानकी मंदिर, बम्होरी में जैतवार के पास हनुमान जी का मंदिर, धवारी का साईं बाबा मंदिर आदि कुछ अन्य पूजा स्थल हैं।

माधवगढ़ किला :   सतना में विभिन्न धार्मिक स्थलों के अलावा माधवगढ़ किला लगभग 400 साल पहले बनी एक ऐतिहासिक संरचना है। राजा माधो सिंह जी ने किले का निर्माण करवाया था। किले को 1787 में मराठों की लड़ाई के लिए याद किया जाता है। यह तुंगा युद्ध के मैदान के साथ-साथ एक राजस्थानी गांव के ऊपर स्थित है। इस विशेष गांव में कई स्थानीय हस्तशिल्पकारों और दस्‍तकारों को आवास और बाजार उपलब्‍ध कराए गए हैं। यह किला कभी रीवा राज्य का केंद्र हुआ करता था। किले के आकार के साथ-साथ गुंबदों और अंदरूनी हिस्सों पर सुंदर नककाशी-कला इसे ऐतिहासिक और स्थापत्य की दृष्टि से उत्‍तम बनाती हैं। ठाकुर भवानी सिंह जी ने वर्ष 2000 में हेरिटेज होटल में बदल दिया है। किले के भीतर जिस कमरे में महाराजा प्रताप सिंह रहते थे उसे प्रताप महल सुइट नाम दिया गया है, साथ ही देवधी फूल महल भी है।

भगवान परशुराम सरोवर :  सतना में सिमरिया रोड पर स्थित भगवान परशुराम सरोवर घूमने के लिए एक अच्छी जगह है। यहां पर आप भगवान परशुराम की 15 फीट ऊंची एक बड़ी प्रतिमा देखने को मिलती है और यहां पर एक सरोवर भी बना हुआ है। भगवान परशुराम जी की मूर्ति की स्थापना वर्ष 2017 में ब्राह्मण संगठन विप्र सेना द्वारा कराई गई थी।  यह जगह रेलवे स्टेशन से लगभग आठ कि.मी. दूर है और यहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं।

पन्नीखोह जलप्रपात, मैहर 

आल्हा ऊदल के अखाड़े से लगभग चार कि.मी. दूर जंगल में एक ऐसा झरना है जहां आसपास के लोग इस प्राकृतिक छटा को देखने आते हैं यहां पहाड़ी से आया पानी लगभग 600 फीट की ऊंचाई से झरना बनकर गिरता है जिसे लोग पन्नी खोह के नाम से जानते हैं। पन्नी जलप्रपात मैहर एक अच्छी जगह है। यह जलप्रपात जंगल में स्थित है और यहां पर आप घूमने के लिए बरसात के समय जा सकते हैं। इस जलप्रपात तक जाने के लिए हमें काफी पैदल जाना पड़ा क्योंकि यहां पर जाने के लिए सड़क नहीं है। फिर भी यहां पर आकर बहुत अच्छा लगेगा।

विंध्य क्षेत्र के इस प्राकृतिक सौंदर्य को देखने के लिए अभी भी देश के पर्यटक आते हैं। अगर मैहर क्षेत्र के पन्नी खोए मैं गिर रहे झरने तक जाने के लिए पक्का रास्ता बना दिया जाए और कुछ अन्‍य सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएं तो यह एक आदर्श पर्यटन स्थल बन सकता है। मैहर में जो लोग मां शारदा देवी के दर्शन करने आते हैं वह लोग भी इस पर्यटक स्थल को देखने अवश्य जाएंगे जिससे मैहर के राजस्व में बढ़ोतरी होगी ही मैहर का विकास भी होगा।

अक्‍सर स्‍थानीय लोग ही घूमने आते हैं। यहां पर आने के लिए दो नदियों को पार करना पड़ता है इस रास्ते के दोनों और जंगल है, रास्ता कच्‍चा और पथरीला है जिस पर पानी भी बहता है। इससे यह रास्ता कठिन हो जाता है इसलिए यहां पर लोग सिर्फ पैदल या मोटरसाइकिल से ही आते हैं।

गोला मठ मंदिर :  

मैहर में गोला मठ मंदिर स्थित शिव भगवान जी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह पूरा मंदिर पत्थर से बना हुआ है। इस मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग विराजमान है और मंदिर के बाहर नंदी भगवान की पत्थर की प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर की दीवारों में पत्थर पर उकेरी गई नक्काशी देखने के लिए मिलती है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। यहां के लोगों का यह विश्‍वास है कि यह मंदिर एक रात में तैयार किया गया है। आप यहां पर जाकर इस मंदिर की सुंदरता को देख सकते हैं। यहां पर आकर शांति मिलती है।

गोला मठ के बारे में  :   शिव को समर्पित गोला मठ मंदिर नागर शैली में निर्मित पूर्वाभिमुख, पंचरथी मंदिर की लंबवत योजना में अधिष्ठान जंघा, शेखर एवं तल योजना में गर्भगृह, अंतराल एवं स्तंभों पर आधारित मुख्य मंडप प्रमुख अंग है। मंडप की छत शतदल कमल अलंकरण युक्त है। इसके स्तंभों का निचला भाग अष्टकोण एवं उपरी भाग षोडशकोणीय है।

स्तंभ शीर्ष गोलाकार है, जिनके ऊपर भार वाहक कीचक है। गर्भगृह का द्वार सघन रूप से अलंकृत है। द्वार शाखा के निचले भाग में गंगा, यमुना नदी देवियों का अंकन है। रूप स्तंभ में मिथुन युगल तथा सिर दल पर ललाट बिंब में शिव उत्कीर्ण  है। मंदिर के बाहरी भाग में जंघा  प्रतिमाओं से सुसज्जित है। यह मंदिर कलचुरी कालीन है।

गोलामठ मंदिर शारदा माई के मंदिर के नीचे से जाने वाली मार्ग पर ही करीब तीन कि.मी. दूर है। इस मंदिर तक जाने के लिए अच्छी सड़क है। इसलिए वहां पहुंचने में आसानी होती है। हम लोग जब इस मंदिर में गए थे। तब यह मंदिर खुला हुआ था और हमने भी शंकर जी तथा नंदी के दर्शन किए। उसके बाद मंदिर की परिक्रमा की।

गोला मठ मंदिर का परिसर बहुत खूबसूरत  और बड़ा है। यहां श्री राम जी और माता काली को समर्पित एक और मंदिर भी है। परिसर में हमें कुछ मूर्तियां भी देखने के लिए मिली थी। इस मंदिर की दीवारों पर हमने नक्काशी देखी, यह नक्काशी खुजराहो के मंदिरों की नक्काशी से मिलती-जुलती लगती है।

बड़ा अखाड़ा मंदिर  :   बड़ा अखाड़ा मंदिर भी मैहर में घूमने की एक प्रमुख जगह है। यहां पर मंदिर की छत पर बना हुआ एक बहुत बड़ा शिवलिंग देखने के लिए मिलता है। मंदिर के अंदर 108 शिवलिंग विराजमान है। यहां पर मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य शिवलिंग भी देखा जा सकता है। इसके अलावा मंदिर में एक आश्रम भी है, जहां पर संस्‍कृत में शिक्षा दी जाती है। यहां पर भी आप घूम सकते हैं और यहां पर भी बहुत अच्छा लगता है।

बड़ी खेरमाई मंदिर  : 

बड़ी खेरमाई के बारे में कहा जाता है, कि यह शारदा माता की बड़ी बहन है और मैहर आने वाले भक्‍तों को शारदा माता के दर्शन करने के बाद इनके दर्शन जरूर करने होते हैं। यहां पर ढेर सारे मंदिरों के साथ ही एक प्राचीन बाबड़ी भी देखने के लिए मिलती है। यह बावड़ी देखने में बहुत ही पुरानी लगती है। आजकल इस बावड़ी को ऊपर से कवर कर दिया गया है, ताकि कोई व्यक्ति इस बावड़ी में गिरे ना। इस बावड़ी में नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है।

मंदिर में प्रवेश करते ही मुख्य मंदिर बड़ी खेरमाई मंदिर का है। इसके अलावा मंदिर परिसर में श्रीराम जी का मंदिर है। मंदिर में एक विशेष मंच बनाया गया है, जिसमें शायद नवरात्रि के समय दुर्गा जी की स्थापना की जाती है। भक्‍तजन और पर्यटक यहां पर आकर घूम सकते हैं।

ओयला माता मंदिर :   

ओयला मंदिर, मुख्य रूप से दुर्गा जी को समर्पित एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। यहां पर दुर्गा माता की बहुत ही भव्य प्रतिमा है। परिसर में बने अन्‍य मंदिरों में गणेश जी और शिव जी के मंदिर हैं। उनके दर्शन के साथ ही मंदिर में घूमने भी आ सकते हैं। यह मंदिर मैहर में प्रसिद्ध है और जो भी मैहर की यात्रा करता है। वह इस मंदिर में भी जरूर आता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर दुर्गा जी की आकर्षक प्रतिमा बनी हुई है और एक ओर गणेश जी और दूसरी ओर शंकर जी की प्रतिमाएं है। मंदिर में आप अंदर प्रवेश करने पर धातु की बनी हुई दुर्गा जी बहुत ही आकर्षक मूर्ति देखने को मिलती है।

यहां पर गणेश जी की धातु की प्रतिमा भी है। यहां पर शिवलिंग के दर्शन होते हैं। जिसकी शिवलिंग में चेहरे का आकार दिया गया है। अंदर एक कुआं भी है जिसे अब कवर कर दिया गया है ताकि कोई भी कुएं में गिर ना जाए।आप यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है और यहां पर आकर आपको शांति मिलती है।     ओयला मंदिर बड़ी खेरमाई मंदिर के आगे मैहर – सतना रोड पर स्थित है। इस मंदिर तक जाने के लिए ऑटो मिल जाते हैं।

भरहुत स्तूप:  सतना जिले के भरहुत गांव में स्थित प्रसिद्ध भरहुत स्तूप एक ऐतिहासिक बौद्ध अवशेष स्‍थल है। यह स्थान बौद्ध स्तूपों एवं कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्तूप संभवतः 185 ईसा पूर्व पुष्यमित्र शुंग ने बनवाया था। यहां प्राचीन बौद्ध स्तूप के अलावा सम्राट अशोक का एक शिलालेख भी है। भरहुत स्तूप सतना शहर से करीब 23 कि.मी. दूर है। यहां आने के लिए सरकारी बसें ही मिलती हैं। वैसे तो टैक्सियां भी मिल जाती है, लेकिन किराया कुछ ज्‍यादा ही मांग रहे थे, इसलिए हमने कार्यक्रम नहीं बनाया।

इच्छापूर्ति मंदिर या केजीएस मंदिर- मैहर: 

मैहर में विंध्‍य क्षेत्र का अपनी शैली का विशिष्ट पूजा-स्थल  और बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया, मां दुर्गा को समर्पित इच्छापूर्ति मंदिर मैहर में घूमने का एक प्रमुख स्‍थान है। लगभग 12 हजार वर्गफुट जगह में अक्षरधाम शैली पर बनाया गया यह दिव्य मंदिर मैहर आने वाले पर्यटकों के लिए एक बड़ा उपहार है। केजेएस सीमेंट फैक्ट्री, राजनगर (मैहर) के आवासीय परिसर में स्थित, यह मंदिर सात साल में बनकर तैयार हुआ था। हमें बताया गया कि वाराणसी के 21 विद्वान पंडितों के निर्देशन में प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी।

इस मंदिर में लगा हल्का गुलाबी पत्थर राजस्थान के बंशीपहाड़पुर से लाया गया था। जयपुर से आए विशेष अनुभवी शिल्पकारों/ कारीगरों ने मैहर में ही खूबसूरत नक्काशी करके खूबसूरत चित्र उकेरे और इस सपने को साकार किया। पत्थर की बड़ी शिलाओं को मैहर तक लाना और फिर उन पत्थरों में बेल-बूटों की कलात्मक बारीक नक्काशी करना बेमिसाल है। इस मंदिर के बाहर और भीतर में आपको अद्भुत नक्काशी देखने के लिए मिलती है।

शाम के समय खूबसूरत लाइटों से जगमगाता – इच्छापूर्ति मंदिर

जमीन से 62 फुट ऊंचा यह मंदिर सुन्दर बगीचों से घिरा हुआ है और इसके सामने एक रंगीन फव्वारा इसकी शोभा में चार चांद लगाता है।  मंदिर  के बाहर खूबसूरत फव्वारे देखने को मिलते हैं। रात के समय में मंदिर खूबसूरत लाइटों से जगमगाता रहता है। अधिकतर पर्यटक यहां शाम छ: बजे के बाद ही आते हैं, जो दर्शन-आरती के बाद यहां के सुंदर दृश्यों का आनंद लेते हैं।

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मां दुर्गा विराजमान हैं जबकि उनके एक ओर शंकर जी और दूसरी ओर हनुमान जी विराजित हैं। मुख्य गर्भगृह के बाहर मंदिर के मध्य  में एक ओर भगवान श्रीराम का दरबार है तो दूसरी ओर श्रीलक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा है। स्फटिक शिवलिंग और काले पत्थर के नंदी सहित हनुमान जी की प्रतिमा भी अलग-अलग मंडपों में स्थापित की गई हैं।   मंदिर के बाहर हरे-भरे उद्यान मंदिर की सुंदरता  में चार चांद लगा देते हैं।    मंदिर के गर्भगृह में लगाए झूमर प्रकाश का मोबाइल-चित्र।

भारतीय संगीत की विरासत यानी मैहर बाबा का घर : 

अभी तक हमनें मैहर नगरी में आध्‍यात्मिकता के दर्शन किए थे। लेकिन मैहर में एक और धाम है, जहां के दर्शन किए बिना शायद हमारी यह यात्रा अधूरी ही रह जाती। जी, हां वह है भारतीय शस्‍त्रीय संगीत का धाम। एक छोटा सा शहर मैहर, त्रिकुट पर्वत पर शारदा माई के मंदिर के कारण जहां एक ओर 52 शक्ति पीठों में से एक है, वहीं यह भारतीय शस्‍त्रीय संगीत के एक प्रसिद्ध मैहर घराने की पीठ अर्थात अलाउद्दीन खान साहिब का घर भी है। जब मंदिर में भीड़ होती है, तो यहां भी पर्यटकों और भक्‍तजनों की कतार देखने को मिलती है।

एक खास बात जो हमें बताई गई वह यह कि बाबा प्रति सप्‍ताह शारदा माई के दर्शन करने जाते थे। उनके समय तक सीढियां भी पक्‍की नहीं थीं। ऊपर मंदिर तक पैदल ही जाना होता था। आवागमन के साधन सीमित थे। लेकिन बाबा घर से शिखर तक पैदल ही जाते और दर्शन करने के बाद पैदल ही वापस आते थे। शायद इसीलिए लोग उन्‍हें मैहर बाबा कहने लगे थे।

मैहर घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक विशेष शैली के लिए जाना जाता है, जिसमें केवल तार एवं ताल वाद्यों की शिक्षा दी जाती है। उस्‍ताद अलाउद्दीन खां ने अपने बेटे अली अकबर खां, बेटी स्व. अन्नपूर्णा देवी (रविशंकर की पहली पत्नी), रविशंकर और निखिल बनर्जी को लेकर इस घराने की स्थापना की थी। अली अकबर खां (सरोद वादन) के अलावा शेष सभी सितारवादन के क्षेत्र में नाम कमाया था। इतना ही नहीं बाबा के शिष्‍यों में पंडित रवि शंकर, निखिल बनर्जी, पन्नालाल घोष, वसंत राय, बहादुर राय आदि ने विश्‍व में भारतीय शास्‍त्रीय संगीत को एक पहचान दी और विशेषकर पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय बनाया है।

उस्ताद अलाउद्दीन खां (1862- 6 सितम्बर 1972) एक प्रसिद्ध सरोद वादक थे, लेकिन साथ ही अन्य वाद्य यंत्रों को बजाने में भी पारंगत थे। एक अतुलनीय संगीतकार और बीसवीं सदी के सबसे महान संगीत शिक्षकों में उनका नाम आदर से लिया जाता है। उन्होंने स्वयं गोपाल चंद्र बनर्जी जैसे संगीत महारथी से संगीत की दीक्षा ली थी। उन्होंने कड़ी मेहनत से रामपुर के मशहूर वीणावादक वज़ीर खां साहब से भी संगीत के गुर सीखे थे। अलाउद्दीन खां मैहर के महाराजा बृजनाथ सिंह के राज दरबार में दरबारी संगीतकार थे। कहा जाता है कि राजा साहब उन्‍हें आदर से ‘बाबा’ कहते थे। समय के साथ-साथ, सभी उन्‍हें बाबा कहने लगे और अलाउद्दीन खान उस्ताद के बजाय मैहर बाबा प्रसिद्ध हो गए। संगीत सम्‍मेलनों/गोष्ठियों में उन्‍हें आदर से ‘मैहर बाबा’ के नाम से ही सम्‍बोधित किया जाता था।

अपने जीवन काल में उन्होंने कई रागों तथा रागनियों की रचना की और विश्व संगीत जगत में विख्यात मैहर घराने की नींव रखी। उनकी सबसे खास रिकॉर्डिंग्स में से आकाशवाणी के साथ 1950-60 के दशक में की गई उनकी रिकॉर्डिंग सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।

उस्ताद अलाउद्दीन खान को कला के क्षेत्र में सन 1958  में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इससे पहले उन्हें साल 1954 में संगीत नाट्य अकादमी ने अपने सबसे बड़े सम्मान ‘संगीत नाट्य अकादमी फैलोशिप’ से सम्‍मानित किया था।

मैहर बाबा ने (1972 तक) सबसे बड़ी लंबे समय तक मैहर के इस घर में रहे थे।

मैहर बाबा जिस घर में रहते थे, वह एक शांत चौड़ी सड़क पर है, जिसमें एक गेट है जिसे कोई भी आ सकता है। यह एक सार्वजनिक स्थान है। संयोग से उस समय कोई आगंतुक नहीं था। मैहर बाबा  का वह कमरा जिसमें वह रहते थे, इसे उनकी स्मृति के रूप में संरक्षित किया गया है।

मैहर में यह हमारा अंतिम दर्शनीय स्‍थल था। अगले दिन हम अपने शहर के लिए रेलगाड़ी पर सवार हो गए।

आशाबेन पटेल : पर्यटन क्षेत्र में रुचि के कारण भारत भर में अनेक यात्राएं की हैं। वर्तमान में, गुजरात के अहमदाबाद में शिक्षिका हैं। सभी तस्वीरें लेखक द्वारा  उपलब्ध कराई गई हैं

 

 

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