प्रस्तुति : तेनजिंग त्सागोंग
युद्ध एक क्रूर तथ्य है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है और इसकी घटनाओं को कवर करने वाला पत्रकार इसमें किसी भी समय, किसी दुर्घटना का शिकार हो सकता है। हालांकि, एक और खास बात सामने आती है कि कुछ विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि अब युद्ध पत्रकारिता शायद पहले जितनी खतरनाक या अधिक जोखिम भरी नहीं रही है।
30 साल पहले इस विषय पर नज़र रखने के लिए “युद्ध पत्रकारों के लिए सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय समिति” का गठन किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय स्त र पर यह स्वीजकार किया गया था कि वह युद्ध के सटीक हालात की जानकारी देने वाले ऐसे रिपार्टर होते हैं, जिन्हेंव लड़ने आदि का प्रशिक्षण नहीं होता, वह आमतौर पर एक सुरक्षा घेरे में रहते हैं। कई बार संघर्ष से भरा युद्ध स्थील उनके लिए भी घातक हो सकता है, इसे ध्या।न में रख कर समिति द्वारा कुछ नियम तैयार किए गए हैं, जिनमें उनके लिए एक अलग ड्रैसकोड और सुरक्षा उपकरण तय किए हैं। पूर्व में ऐसे पत्रकार अपने देश की सेना की वर्दी पहनते थे, अब उन्हेंं सेना से अलग वर्दी, जिसमें नीले रंग की शर्ट के साथ बुलेट प्रूफ जैकेट और बुलेट प्रूफ हेलमेट दिए जाते हैं और पर बड़े अक्षरों में “प्रेस” अंकित होता है। इसलिए विपक्षी सेना भी उन पर हमला नहीं करती है। यदि कहीं गलती से फंस भी जाएं तो मौका मिलते ही, उन्हेंा ससम्मा्न उनके देश की सेना को सौंप दिया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार उनकी सुरक्षा का दायित्व संबंधित देश की सेना पर होता है और उन्हेंा सेना के सुरक्षित चक्र में रखा जाता है। समिति ऐसे पत्रकारों को एक अंतरराष्ट्रीय कर्मचारी मानकर दुनिया भर में उनकी सुरक्षा के साथ प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है, प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन और पत्रकारों पर हमलों की निगरानी और रिपोर्ट करती है, हिरासत में लिए गए पत्रकारों की ओर से राजनयिक और कानूनी सहायता और आपातकालीन वित्तीय और पुनर्वास सहायता प्रदान करती है।
इस समिति द्वारा जारी की गई एक सूचना के अनुसार, 7 अक्टूबर,2023 को इजराइल-गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से इस क्षेत्र में 60 से अधिक पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए हैं। जबकि इसकी तुलना में, यूक्रेन में युद्ध के लगभग दो वर्षों में 17 पत्रकार/मीडियाकर्मी मारे गए हैं।
युद्ध क्षेत्र में जाकर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को खतरों के बारे में सजगता और जागरूकता शायद किसी अन्य् पत्रकार से अधिक होती है। बहरहाल, रिपोर्टर लामा अल-एरियन ने द’ न्यूयार्क टाइम्स में ओपिनियन कॉलम के लिए एक अतिथि निबंध में लिखा है कि रॉयटर्स में एक वीडियो पत्रकार उनके दोस्त इस्साम अब्दुल्ला की 13 अक्टूबर को दक्षिणी लेबनान में सीमा पर हमले के दौरान मृत्युि हो गई। उस समय वह इज़राइली रक्षा बलों तथा हिज़्बुल्लाह के बीच लगातार बढ़ती झड़पों पर रिपोर्ट कर रहे थे। “प्रेस” अंकित जैकेट पहने होने के बाद भी उन पत्रकारों पर हमला हुआ था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि युद्ध क्षेत्र में उनकी सुरक्षा की गारंटी होती है लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उस समय गाजा में (शायद) पांच पत्रकार अपनी जान जोखिम में डाल कर रिपोर्टिंग कर रहे थे। IDF (इज़राइल रक्षा बल) ने इसका खुलासा करते हुए बताया कि वे अपनी ओर से युद्ध पत्रकारों का पूरा ध्या न रखते हैं। यद्यपि, IDF ने उन्हेंओ सुरक्षा चक्र में रखा था फिर भी हम्माखस की ओर से की गई गोलीबारी में कुछ पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया, गोलियां लगने से वह बुरी तरह घायल हो गए और चिकित्सा-सहायता तक पहुंचने के कुछ क्षण पहले ही इस्साम अब्दुल्ला की मृत्यु से हो गई। अधिकतर लोग इस उत्तेर से असंतुष्टस हैं, उनकी मांग है कि हमारे साथी पत्रकारों की पुख्तान सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए थी।
अल-एरियन हमें याद दिलाती हैं कि अब्दुल्ला जैसे पत्रकारों के साहस के कारण ही हमें युद्ध की क्रूर और बेदाग तस्वीैरें देखने को मिलती हैं। ऐसा ही इस बार भी हुआ – सफेद कफन में ढंके हुए छोटे बच्चों के शव, उनके लिए रोते और शोक मनाते हुए माता-पिता, ध्व्स्तर भवनों की ईंटों के बीच फंसकर हवा में लटके मृत लोग आदि आदि।
अल-एरियन ने अपने शब्दों में ऐसे क्षणों की तात्कालिकता और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए हम सभी की जिम्मेदारी को शक्तिशाली ढंग से व्यक्त किया है। वह लिखती हैं कि मीडिया के एक सदस्य के रूप में, मैं इन सवालों से जूझती रहती हूं कि क्या हम अपने अग्रिम पंक्ति के पत्रकारों के प्रति आभारी हैं? जब उनका काम ही खतरे पर निर्भर करता है तो सुरक्षा में कमी के साथ काम करने का क्या अर्थ है?
अल-एरियन के शब्दत (लेख) एक मित्र और सच्चाई को रिपोर्ट करने के प्रति उसकी उत्कट प्रतिबद्धता के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि है, जो सच्चाई को रिपोर्ट करने की उनकी उत्कट प्रतिबद्धता को समर्पित रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हेंि अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है। यह उनकी दोस्ती, उनके दुःख और ऐसे समय में आवश्यंक सामूहिक सांत्वीना प्रदान करने की एक कहानी है।
*****
तेनजिंग त्सागोंग ! द’ न्यूयार्क टाइम्स में संपादकीय सहायक (विशेष परियोजनाएं) (द’ न्यूयार्क टाइम्स से साभार)