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यूक्रेन के उखड़ते पैर : अमेरिका से सहायता ।

अमेरिका से और अधिक सहायता से यूक्रेन को रूस के साथ युद्ध में हार से बचने में मदद मिलेगी।

*अनिरूद्ध सिंह

आजकल अंतराष्‍ट्रीय स्‍तर पर यह चर्चा जोरों पर है कि यूक्रेन और रशिया के बीच चल रहे युद्ध में गतिरोध आ गया है। हाल के महीनों में परिस्थितियां रूस के पक्ष में बदल गई हैं। उसने अधिक क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है और ऐसा लगता है कि इन गर्मियों में उसके द्वारा एक बड़ा आक्रमण किए जाने की संभावना है। यहां उल्‍लेखनीय है कि इस बीच, अमेरिका द्वारा दिसंबर में सहायता भेजना बंद करने के बाद से यूक्रेन की लड़ने की क्षमता में कमी आई है और उसकी हालत बदतर होती जा रही है

यूक्रेन के खिलाफ रूस का युद्ध लंबा, विनाशकारी और थका देने वाला हो चुका है।   इससे स्थायी शांति की वापसी की संभावनाएं बहुत कम हो गई हैं। संभावित परिणाम विवादित और भारी हथियारों से लैस सीमा रेखा पर एक असहज संघर्ष विराम होगा, न तो शांति, न ही युद्ध, न कोई विजेता या हार, न कोई वास्तविक बातचीत और न ही किसी समझौते पर भरोसा करके, युद्ध समाप्‍त करने पर सहमत होना होगा।

यूक्रेन को 60 अरब डॉलर की सहायता देने के एक प्रस्‍ताव को सीनेट ने सप्ताहांत में मंजूरी दे दी है और राष्ट्रपति बिडेन ने संकेत दिया है कि वह इस पर यथाशीघ्र हस्ताक्षर करेंगे। इससे यूक्रेन द्वारा युद्ध की स्थिति में फिर से बदलने की संभावनाएं बनती दिख रही हैं। आने वाले दिनों में सदन द्वारा विधेयक पारित किए जाने की संभावना है। यह सहायता पैकेज युद्ध को कैसे प्रभावित कर सकता है। अमेरिका इस फंड से यूक्रेन को उन दो चीजों को फिर से इकट्ठा करने में मदद करेगा जो युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं यानि तोपखाना (गोले सहित) और विमानभेदी युद्धक सामग्री।

आजकल का युद्ध अक्सर तोपखाने के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है, जिनका लंबी दूरी से लक्ष्य पर हमला करने और विस्फोटक गोले दागने के लिए सेनाएं उपयोग  करती हैं।

दोनों पक्षों ने सैनिकों को मारने और मीलों दूर से टैंकों और बंकरों को नष्ट करने के लिए तोपखाने का इस्तेमाल किया है, जिससे हमले से पहले दुश्मन कमजोर हो गया है। तोपखाने ने भी सेनाओं का आगे बढ़ना रोक दिया है।

यद्यपि, ऐसा भी कहा जा रहा है कि हाल के महीनों में यूक्रेन में तोपखाने के गोले ख़त्म होने लगे हैं। जबकि रूसी सेनाओं ने यूक्रेन की तुलना में पांच से 10 गुना अधिक गोले दागे हैं। कुछ लोग इसे समझ से परे बताते हुए, शायद रूसी प्रचार का हिस्‍सा बता रहे हैं। दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में यूक्रेन को अंततः पीछे हटना होगा और मैदान छोड़ना पड़ सकता है।

यूक्रेन को अमेरिका निर्मित पैट्रियट मिसाइलों जैसे विमान भेदी हथियारों पर  भरोसा है, जो विमानों और मिसाइलों को मार गिरा सकते हैं। इन हथियारों के खतरे ने रूस को अपनी वायु सेना की पूरी ताकत लगाने से रोक दिया है क्योंकि उसे डर है कि यूक्रेन उसके महंगे विमानों को नष्ट कर देगा। इसके बजाय रूस ने लंबी दूरी की मिसाइलों का सहारा लिया है और यूक्रेन ने उनमें से कई को मार गिराया है।

लेकिन यूक्रेन में उन हथियारों की भी कमी होने लगी थी। पिछले हफ्ते, राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने रूसी मिसाइल हमले को रोकने में असमर्थता के लिए यूक्रेन को कम आपूर्ति को जिम्मेदार ठहराया, जिसमें कीव के उत्तर में कम से कम 17 लोग मारे गए थे। ज़ेलेंस्की ने कहा कि अगर यूक्रेन को पर्याप्त वायु रक्षा उपकरण मिले होते तो ऐसा नहीं होता।

विधेयक के कानून बनने के कुछ ही दिनों बाद यूक्रेन में नए तोपखाने और वायुरोधी हथियार पहुंचने शुरू हो जाएंगे। कई महीनों के हथियारों के लिए 60 बिलियन डॉलर का भुगतान किया जाएगा। इस सहायता का कुछ हिस्सा प्रशिक्षण के लिए भी खर्च किया जाएगा। यह सहायता यूक्रेन की एक और कमी (यानि कार्मिकों की कमी) को दूर करने में मदद करेगा, जिससे सेना को अग्रिम पंक्ति के लिए नए रंगरूटों को अधिक तेज़ी से तैयार करने की अनुमति मिलेगी। इससे यूक्रेन की सेनाओं को अब्राम्स टैंक और एफ-16 जेट सहित पश्चिमी सहयोगियों से प्राप्त कुछ उन्नत हथियारों के उपयोग करने के तरीके सिखाने में भी मदद मिलेगी।

एक बार जब सहायता पहुंचनी शुरू हो जाएगी, तो संभावना है कि यूक्रेन इसे पूर्वी मोर्चे पर काम पर लगाएगा, जहां रूस ने हाल ही में अवदीवका शहर पर कब्जा कर लिया है। इससे रूस की हालिया प्रगति में बाधा उत्‍पन्‍न हो सकती है और उसे आगे बढ़ने से बहुत कुछ रोका जा सकता है। वहीं कुछ विश्लेषकों को आशंका है कि कम आपूर्ति होने से यूक्रेन, कीव के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े शहर, खार्किव के आसपास के ग्रामीण इलाकों और काला सागर तट के साथ इसके शेष क्षेत्र की रक्षा के लिए संघर्ष कर सकेगा।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस सहायता से यूक्रेन शायद अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और अपने सबसे महत्वपूर्ण शहरों को बनाए रखने में सक्षम होगा।  यदि सब कुछ ठीक रहा, तो देश के पूर्वी और दक्षिण- पूर्व के क्षेत्रों को वापस लेने के लिए शायद यूक्रेन 2025 में एक आक्रामक अभियान शुरू कर सकता है। इसमें डोनबास के पूर्वी क्षेत्र और क्रीमिया के दक्षिणी प्रायद्वीप में रूस की हिस्सेदारी के बीच दरार पैदा करना एक महत्वपूर्ण लक्ष्य हो सकता है।

यूक्रेन का आधिकारिक लक्ष्य पूरे डोनबास और क्रीमिया पर दोबारा कब्ज़ा करना है। कई विशेषज्ञों को संदेह है कि यूक्रेन ऐसा कर सकता है, खासकर पिछले साल के निराशाजनक जवाबी हमले के बाद। उधर सहायता पैकेज के कुछ आलोचकों का तर्क है कि यह यूक्रेन को रूस की प्रगति को रोकने की अनुमति भी नहीं देगा। ओहियो रिपब्लिकन सीनेटर जे.डी. वेंस का कहना है कि अमेरिकी विनिर्माण वर्तमान में रूसी हथियारों के उत्पादन के साथ तालमेल नहीं रख पा रहा है। इन आलोचकों का तर्क है कि युद्ध पश्चिम की तुलना में रूस के लिए अधिक मायने रखता है और रूस इसके लिए अधिक संसाधन समर्पित कर रहा है।

फिर भी, अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि अतिरिक्त सहायता से सार्थक बदलाव आएगा। उन्हें चिंता है कि रूस की आसान जीत उसे अन्य देशों पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है या अमेरिका और उसके सहयोगियों पर विश्वास को कम करके चीन को ताइवान पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

यूक्रेन रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों से रूस अब सेनाओं को बाहर निकालना चाहता है लेकिन कम से कम सितंबर 2022 में अपने कब्जे वाले चार प्रांतों पर रूस अपना दावा मजबूत करना चाहता है। साथ ही रूस को उम्मीद है कि यूक्रेन का समर्थन करने का पश्चिमी देशों का संकल्प खत्म हो जाएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका और शायद  यूनाइटेड किंगडम में 2024 में चुनाव होने हैं। जर्मनी में भी 2025 में आम चुनाव होने हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 2024 में फिर से चुनाव का सामना करना पड़ेगा। इसलिए, 2024 से पहले लड़ाई समाप्त करने के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना जरूरी होगा।

यूक्रेन को आशा है कि उसको हुए नुकसान को अंतरराष्ट्रीय सहायता से पूरा किया जा सकेगा जिससे यूक्रेन को एक आधुनिक, प्रतिस्पर्धी और पर्यावरण के अनुकूल अर्थव्यवस्था बनाने का मौका मिलेगा। इस प्रकार एक बार युद्ध समाप्‍त होने के बाद, यूक्रेन एक आर्थिक चमत्कार की कोशिश कर सकता है, जिससे युद्धकालीन विनाश को शांतिकाल के आधुनिकीकरण में विकसित किया जा सके।

दूसरी ओर, रूस भी धीरे-धीरे आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंधों के प्रभाव को महसूस करने लगा है। प्रतिबंध दिल के दौरे की तरह काम नहीं करते; इनका असर धीरे-धीरे फैलने वाले कैंसर जैसा होता है और ऐसे दीर्घकालिक नुकसान से निपटना अधिक कठिन साबित होता है। इसलिए सोवियत रूस भी बुनियादी संरचना को छुपे हुए वरदान में बदल सकता है। यूक्रेन के लिए सबसे यथार्थवादी परिदृश्य शायद युद्ध-पूर्व सीमाओं पर वापसी नहीं है। राष्ट्र छोटा होगा, लेकिन वह अपने अधिकांश क्षेत्र को बरकरार रख सकता है, फिर खुद को आर्थिक और रणनीतिक रूप से यूरोप के साथ एकीकृत कर सकता है। यह पूरी तरह से हार से कहीं बेहतर है।

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*अनिरूद्ध सिंह ब्‍लाग्‍र।

 

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