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राम रेखा धाम : सिमडेगा (झारखंड)

समृद्ध इतिहास और पर्यटन आकर्षणों का एक शहर

*कैप्टन प्राण रंजन

शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर, सिमडेगा झारखंड राज्य का एक ऐसा शानदार पर्यटन स्‍थल है जो धार्मिक स्थलों के निमित्‍त लोकप्रिय होने के साथ ही अपने नदी बांध और वन्यजीव अभयारण्य के लिए भी जाना जाता है। फिर भी अधिकांश भारतीय सैलानी इसकी खूबसूरती से अब तक अंजान है। भरपूर हरियाली के साथ सुखद जलवायु और साथ ही प्राकृतिक सुंदरता लिए यहां के परिदृश्य, देश और परदेश के दोनों पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। कई पर्या-पर्यटन स्‍थलों, पौराणिक और ऐतिहासिक विरासतों को अपने में समाएं हुए, पहाड़ियों से घिरा सिमडेगा पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता रहा है। अन्य के साथ साथ, रामरेखा धाम इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। सिमडेगा में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए, सरकार द्वारा इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से काफी काम किया गया है।

अपने वृहद इतिहास और पर्यटन आकर्षणों के साथ यह एक समृद्ध शहर है, अगर आप सप्‍ताह भर के अवकाश के लिए झारखंड के किसी खास गंतव्‍य की खोज में हैं, तो आप सिमडेगा की सैर पर आ सकते हैं। यह एक ऐसा स्थान है, जहां आप सुकून भरा समय अपने परिवार या दोस्तों के साथ बिता सकते हैं। आइए जानते हैं कि यह स्थान अपने पर्यटन आकर्षणों के साथ आपको किस प्रकार आनंदित कर सकता है।

सिमडेगा के बारे में….

समुद्र तल से करीब 1312 फीट ऊंचाई पर अवस्थित  सिमडेगा झारखण्ड राज्य का एक दूरस्‍थ शहर और सिमडेगा नामक जिले तथा उपखंड का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसके इतिहास को देखने पर पता चलता है कि सिमडेगा पूर्व में कैसालपुर-बिरूगढ़ परगना नाम का राज्य था। यह क्षेत्र कई शक्तिशाली राजवंशों के अधीन रह चुका है। यहां काफी समय तक मौर्य साम्राज्य और उसके बाद यहां गजपति राजवंशों के अधीन रहा था, जिस पर कलिंग क्षेत्र (वर्तमान ओडिशा) के पूर्वी गंगा वंश के बाद कपिलेन्द्र (1435-1467 ई.) ने गजपति साम्राज्य सूर्यवंशी गजपति वंश की स्थापना की थी। इस क्षेत्र पर गजपति वंशीय राजाओं ने सदियों तक शासन किया था। इतना ही नहीं, ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान भी यहां गजपति राजाओं का ही शासन था। गजपति परिवार के वंशज अभी भी राष्ट्रीय राजमार्ग – 23 पर सिमडेगा शहर से लगभग 11 कि.मी. की दूरी पर स्थित बीरू या बीरूगढ़ में रहते हैं। खूबसूरत पठार के इस क्षेत्र में आदिवासी और उड़िया समुदाय रहते हैं।

राम रेखा धाम :

सिमडेगा भ्रमण के दौरान हम यहां के धार्मिक स्थलों में महत्‍वपूर्ण राम रेखा धाम की चर्चा करते हैं। शहर मुख्यालय से लगभग 26 कि.मी. दूर रामरेखा धाम को एक धार्मिक एवं पवित्र स्थान माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता का आगमन हुआ था। इस स्थल के बारे में लोगों का मानना है कि 14 वर्ष के वनवास की अवधि के दौरान मर्यादा  पुरुषोत्तम श्री राम ने इस मार्ग का अनुसरण किया था। स्वयं भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण इस स्‍थान पर आए थे और उन्होंने यहां कुछ समय बिताया था। इसलिए यह स्थल हिन्दू धर्म के लोगों में काफी महत्व रखता है। खास धार्मिक अवसरों पर यहां भव्य आयोजन किए जाते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण, रामरेखा धाम श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर एक झुकी हुई गुफा में स्थित है। यहां आने वाले भक्‍तों की मान्यता है कि बड़ी-बड़ी शिलाओं से ढकी गुफा के अंदर छत में खींची गई रेखाएं स्वयं प्रभु श्रीराम ने खींची थी। इसी कारण से पावन धर्मस्थली का नाम ‘राम रेखा धाम’ पड़ा है। इसी पावन स्थल पर तपस्वी अग्निजिह्वा का भी आश्रम था।

धार्मिक दृष्टिकोण से यह धाम एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहां दर्शन के लिए हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं का आगमन होता है। कुछ बुजुर्गों का मानना है कि ‘राम रेखा धाम’ के दर्शन का सौभाग्य किसी किसी को ही प्राप्त होता है। (संभवत: वे लोग काफी पहले की बात करते होंगे जब घने जंगलों के कारण यहां आने के साधन नहीं के बराबर ही थे)। लेकिन आज विभिन्न राज्यों और कई समुदायों के लोग यहां आते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।

भगवान राम ने इन गुफाओं में खींची थी रेखाएं तब ही नाम पड़ा रामरेखा।

मार्च, 1912 में बंगाल प्रेजीडेंसी से अलग करके बिहार और उड़ीसा प्रांत बनाए गए थे। कालांतर में, 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग कर आज के झारखंड की स्‍थापना की गई।

संयोग से ब्रिटिश समय में, 1845 से ही मिशनरियों के लिए एक लोकप्रिय कार्यक्षेत्र रहा है। तत्कालीन गजपति राजाओं द्वारा दान में दी गई भूमि पर स्कूलों, मठों, अस्पतालों और *पैरिशों की स्थापना की थी। विशेष रूप से सोसाइटी ऑफ जीसस ने इस क्षेत्र में कई ईसाई स्कूलों की स्थापना करके शिक्षा के प्रसार में मदद की है। (*तकनीकी रूप से पैरिश को एक स्थानीय चर्च समुदाय भी कहते हैं, जिसमें एक मुख्य चर्च और एक पादरी होता है।)

आज भी मौजूद पौरोणिक प्रतीक :

रामरेखा धाम में ऐसे कई प्रमाण हैं, जिससे यहां पुरातात्विक अवशेषों तथा संरचनाओं का पता चलता है। यहां पर अग्नि कुंड, सीता चूल्हा, गुप्त गंगा और भगवान श्रीराम की चरण पादुका आज भी देखे जा सकते हैं। रामरेखा धाम परिसर में श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान के अलावा भगवान शंकर की सुन्‍दर प्रतिमाएं भी स्‍थापित की गई हैं।

कार्तिक पूर्णिमा पर मेला :

वैसे तो यहां पूजा अर्चना के लिए प्रतिदिन श्रद्धालु भक्‍तों का आवागमन होता है। लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां बड़ा उत्‍सव मनाया जाता है और इस समय लगाए गए मेले में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु तीर्थयात्रियों के साथ अन्‍य पर्यटक भी आते हैं। हालांकि, हिंदु धर्मावलम्बियों में रामरेखा धाम को लेकर आस्था देखी जाती है, लेकिन कार्तिक मेले के अवसर पर अन्य समुदायों के लोगों को भी यहां देखा जा सकता हैं, जो यहां आकर अपने परिवार के लिए सुखी जीवन की मंगल कामना करते हैं।

प्रकृति के बीच स्थित धार्मिक स्थलों के भी बदले दिन :

सिमडेगा में बड़ी संख्या में मुख्‍य रूप से विभिन्‍न आदिवासी समुदाय रहते हैं। हालांकि, अब सिमडेगा धीरे-धीरे एक आधुनिक नगर के रूप में विकसित हो रहा है, फिर भी यहां की प्राकृतिक संपदा अभी तक प्रभावित नहीं हुई है। देश विदेश के पर्यटक सिमडेगा के घने जंगलों की खूबसूरती का आनंद लेने और इन आदिवासियों के रहन-सहन की जीवनशैली को निकट से देखने के लिए यहां आते हैं। अब निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा प्रशासन की अनुमति से यहां के जंगलों में पर्यटक कैंप लगाना और दूसरे कार्यक्रम करना सामान्य बात है।

यहां की मनोरम प्राकृतिक छटा पर्यटकों का मन मोहती रही है। प्रशासन का प्रयास है कि जिले में स्थित पर्यटक स्थलों को नया स्वरूप देकर ना सिर्फ पर्यटकों को इनकी ओर बरबस आकर्षित किया जाए, बल्कि इसके माध्‍यम से स्थानीय लोगों की आजीविका भी सुनिश्चित की जा सके।

वर्षों से उपेक्षित सिमडेगा के पर्यटन स्थलों को  पिछले दो-तीन वर्षों से  सरकार द्वारा संवारने का कार्य किया जा रहा है। वैसे तो जिले के इन पर्यटक स्थलों पर पर्यटकों का आवागमन लगा ही रहता है, लेकिन अब उनकी पहचान करके, उनका विकास किया जा रहा है। चिन्हित पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के लिए (अब तक खल रही) मूलभूत सुविधाएं उपलब्‍ध कराई गई हैं, जिससे इन स्थलों पर पर्यटकों की संख्या में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है। इस कार्य में स्थानीय लोगों की भूमिका तय की गई, जिसे यहां के लोगों ने भी सहर्ष स्वीकार किया है। इससे जिला प्रशासन को सहूलियत हुई और पर्यटन स्थलों के सौंदर्यीकरण में लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिला है।

केलाघाघ, दानगद्दी जैसे ईको-पर्यटन के स्‍थलों के साथ ही रामरेखा धाम, बनदुर्गा, केटुंगा धाम जैसी पौराणिक विरासतों को संवारने के साथ ही अन्य कई पर्यटक स्थलों को भी बड़े  पैमाने पर विकास किया जा रहा है।

सिमडेगा में ईको-पर्यटन के अन्‍य स्थल : 

पलकोट वन्यजीव अभयारण्य :

1990 में स्थापित किया गया यह अभयारण्य झारखंड के दो जिलों, सिमडेगा और गुमला के लगभग 184 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र को कवर करता है। इसका शुष्क पतझड़ी वन क्षेत्र हाथियों, तेंदुए, भालू, सियार, बंदर, साही, खरगोश आदि को सुरक्षित आश्रय प्रदान करता है। पलकोट वन्यजीव अभयारण्य अपनी खास जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध माना जाता है।

सिमडेगा भ्रमण की शुरुआत यहां के खूबसूरत प्राकृतिक स्थल, पलकोट वन्यजीव अभयारण्य से की जा सकती हैं। यहां विभिन्न वनस्पतियों, जीव और पक्षियों की प्रजातियों को देख सकते हैं। इस अभयारण्य में वनस्पतियों में औषधीय पौधों के अलावा, साल, आंवला, कुसुम और आम के पेड़ आदि ज्यादा देखने को मिलेंगे। यहां पर्यटकों को जंगली जानवरों की दुर्लभ प्रजातियों तथा वनस्पतियों आदि के बारे में सूचना देने के लिए सूचना केन्‍द्र भी बनाए जाने का प्रावधान रखा गया है। इसके अलावा आप यहां पक्षी विहार का भी आनंद ले सकते हैं।

अर्जुन डोहा :

पलकोट वन्यजीव अभयारण्य से थोड़ी दूरी पर ही अर्जुन डोहा नामक एक शानदार पर्यटन स्थल है। घने जंगलों से घिरा यह स्थान भी प्रकृति के आकर्षक रूप प्रस्‍तुत करता है। यहां से होकर गुजरती छिंदा नदी इस स्थान को खास बनाती है। जिला प्रशासन ने यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इसे एक पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित किया है। अत: सप्‍ताह के अंत में यहां बड़ी संख्‍या में पर्यटकों का आवागमन लगा रहता है। पारिवारिक भ्रमण हो या दोस्तों के साथ ट्रिप, यह स्थल दोनों के लिए उपयुक्त है।

 केटुंगा धाम :

बानो खंड में स्थित केटुंगा धाम एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्व विद्वानों ने इस स्थान की बुद्ध काल की भूमि के रूप में पहचान की है। केटुंगा धाम में बुद्ध की कई मूर्तियां पाई गई हैं। यह कहा जाता है कि मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद पाटलीपुत्र लौटने के दौरान इन मूर्तियों की स्थापना कराई थी।

केटुंगा धाम, जिसे बाबा भोलेनाथ के मंदिर के लिए भी माना जाता है, वह पौराणिक विरासत को दर्शाता है। किवदंती है कि यहां भगवान भोलेनाथ स्वयं भूरूप में प्रकट हुए थे और उनकी ऊंचाई बढ़ती ही जा रही है। तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों की सुविधा के लिए प्रशासन ने मंदिर से नहर तक शेड का निर्माण कराया है। पुराने भवन की मरम्‍मत करते हुए पर्यटकों के लिए समुचित अन्‍य सुविधाएं भी उपलब्‍ध कराने की कार्रवाई की जा रही है।

भैरव बाबा पहाड़ी :

सिमडेगा से लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित भैरव बाबा पहाड़ी मूल रूप से एक गुफा है, जो कि सिमडेगा प्रखंड के फुलवा टांगर नामक गांव में है। गुफा का आकार एक मानव शरीर के रूप में है।

यहां बड़ी संख्या में भक्त सुबह से ही कतारबद्ध होकर गुफा के अंदर विराजमान भगवान भोलेनाथ, गजानन (गणेश जी) और बजरंगबली हनुमान की पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। स्‍थानीय लोगों की भैरव बाबा के प्रति गहरी आस्‍था है और उनका मानना है कि भैरव बाबा के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आज भी प्रत्‍येक शुक्रवार को धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन होता है और अभी भी श्रद्धालु सोशल डिस्‍टेंसिंग’ का पालन करते हुए, पहाडी गुफा में विराजमान भगवान के विग्रहों के समक्ष माथा टेक कर सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

 

भैरव बाबा पहाड़ी गुफा में मकर सक्रांति के अवसर पर वर्ष 2000 से बड़े स्‍तर पर धार्मिक उत्‍सव का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर मकर सक्रांति मेला भी लगाया जाता था। इस अवसर पर देश की जानी-मानी भजन मंडलियां अपने आर्केस्‍ट्रा सहित अन्‍य कार्यक्रम प्रस्‍तुत करती रही हैं।

 

केलाघाघ बांध:

जिला मुख्यालय से लगभग चार कि.मी. की दूरी पर स्थित, केलाघाघ बांध सिमडेगा में छिन्दा नदी पर सबसे सुंदर बांध है। यह केलाघाघ बांध में एक पठार है जहां एक छोटा और सुंदर पार्क मौजूद है। इस बांध का जलमार्ग कई पहाड़ियों से घिरा हुआ होने के कारण, बांध के आसपास की देखने लायक प्राकृतिक खूबसूरती यहां आने वाले पर्यटकों को बहुत ज्यादा आकर्षित और प्रभावित करती है। यह सिमडेगा का वो खास स्थल है, जहां आप अपना पूरा दिन छिंदा नदी और उसके आसपास फैली खूबसूरती के साथ बिता सकते हैं।

मुख्‍य शहर से सटे केलाघाघ पर्यटक स्थल पर रेलिंग के किनारे जालीदार घेरा, सोलर हाईमास्ट लाइट, पार्किंग, प्रसाधन सुविधाएं, पर्यटन पुलिस चौकी, कैंटीन जैसी सुविधाएं स्‍थापित की गई है।

जिला प्रशासन ने मोटर नौकायन और पैरासेलिंग (दो सीट की) की सुविधा उपलब्‍ध कराई है। केलाघाघ बांध के निकट ही राज्‍य पर्यटन निगम द्वारा एक होटल का निर्माण भी कराया जा रहा है। जहां जल्‍दी ही पर्यटकों के लिए आवास के साथ ही भोजन आदि की सुविधा उपलब्‍ध हो सकेगी। एक ‘रिफ्रेशिंग’ एहसास के लिए सिमडेगा के पर्यटन आकर्षणों में आप केलाघाग डैम पर घूमने का प्लान बना सकते हैं। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। शहर भ्रमण के दौरान आप यहां जरूर आएं।  

बनदुर्गा :

बनदुर्गा, दुर्गा माता का पवित्र स्थान है। बोलबा प्रखंड के अंतर्गत मालसाड़ा गांव में एक पहाड़ी पर आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी अपने बनदुर्गा रूप में विराजमान है और यह बनदुर्गा जागृत मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहां लोग मनोकामना पूरी करने के लिए देवी दुर्गा से प्रार्थना करते हैं। यह जगह एक प्राकृतिक पिकनिक स्थल भी है। मंदिर में मां भगवती वनदुर्गा एवं देवी मंदिर के सामने शिरोमणी हनुमान विराजमान है। जिले के आसपास के श्रद्धालुओं के साथ ही यह मंदिर झारखंड सहित बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ के भक्तों की अपार श्रद्धा से जुड़ा है। वनदुर्गा मंदिर का संचालन स्थानीय भक्तों द्वारा किया जाता है। विशेष रूप से चैत्र, अश्विन एवं रामनवमी पर्व का विशेष आयोजन किए जाते हैं। मनोकामना या मन्नत पूरी होने पर भक्तों द्वारा बकरे की बलि अर्पण करने की प्रथा आज भी है। लेकिन नवरात्र के मौके पर नौ दिनों तक बलि पूजा रोक दी जाती है और पुन: विजयादशमी से बलि पूजा प्रारंभ कर दी जाती है।

शायद सन् 1985 में मंदिर का पुनर्निमाण कराकर इसे पक्‍का बनाया गया और उसके बाद तो मंदिर का निरंतर विस्‍तार किया जा रहा है। स्‍थानीय लोगों द्वारा मंदिर का संचालन करने के बाद भी इसके विकास में शासन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वनदुर्गा मंदिर क्षेत्र में हाईमास्ट लाइट तथा स्ट्रीट लाईट की स्‍थापना, फूल और प्रशाद के स्‍टाल, पेय जल, अवागमन के लिए सुलभ साधनों के साथ स्‍वच्‍छता तथा जन प्रसाधन सुविधा का निर्माण आदि को विकसित किया गया है। अब यहां मंदिर में विवाह, मुंडन एवं कथा-कीर्तन जैसे अन्य कार्यक्रम भी सम्‍पन्‍न कराए जाते हैं।

यहां कैसे पहुंचेंगे :  सिमडेगा शहर से मंदिर की दूरी लगभग 45 कि.मी. है। सरकारी बस, ऑटो रिक्‍शा अथवा निजी वाहनों से वनदुर्गा तक पहुंचा जा सकता है।

दानगद्दी :

सिमडेगा जिले के बोलबा प्रखंड में ही शंख नदी पर अवस्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल दानगद्दी सैलानियों को, खासकर नए साल के दिन, पिकनिक के लिए आकर्षित करता रहा है। दानगद्दी में चारों ओर प्राकृतिक सौन्दर्य के मनोरम दृश्य भरे पड़े हैं।

यहां की नीली-सफेद चिकनी चट्टानें, ऊंचे-ऊंचे टीले, झरने, विशाल बालू की रेत, चारों ओर हरे -भरे ऊंचे पहाड़, पंछियों का कलरव लोगों के मन को मोह लेता है। बताया जाता है कि वर्ष 1954 में दानगद्दी में मकर संक्रांति मेले का आयोजन हुआ था। समय के साथ इस जगह की प्रसिद्धि फैलने लगी, जिसकी अगुवाई बोलबा के सरदार बासु सेनापति के परपोता धर्मदेव सेनापति ने किया था। 1962 में शिवलिंग की स्थापना कर महाशिवरात्रि पूजा एवं मेला लगाया गया। यहां का शिव मन्दिर आस्था का केंद्र है। सैलानी मन्दिर में भोलेनाथ का आशीर्वाद लेते हैं।

प्रशासन की ओर से दानगद्दी में वाच टावर, हाईमास्ट लाइट की स्‍थापना, पीने के पानी की सुविधा, स्‍वच्‍छता और सफाई की व्‍यवस्‍था, जन प्रसाधन सुविधाओं का निर्माण किया गया है। दानगद्दी में पर्यटकों की  सुविधा के अनुसार विकास के कार्य होने से अब वहां हर दिन स्थानीय ग्रामीण खान-पान की दुकान लगा रहे हैं, जिससे उनकी कमाई भी हो रही है अर्थात सरकार की नीति के अनुसार ‘पर्यटन से रोजगार’।

पाकरटांड़ की झील और कोबांग डैम : 

सिमडेगा मुख्यालय से करीब 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित पाकर टांड प्रखंड के बसंतपुर में  सुखाधार झील पर्यटकों को प्रभावित करते रहे हैं। क्षेत्र में स्थित उंची पहाड़ी और उनके बीच से निकल कर चट्टानों पर फैलता शंख नदी का पानी दर्जनों झरने बनाता है। कलकल करते यह  झरने और मनोरम पहाड़ियों के बीच अठखेलियां करती जलधाराएं पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं। कई वर्ग मीटर तक फैले चट्टानी मैदान और उसके ऊपर से अठखेलियां कर उतरती शंख नदी काफी सुंदर लगती है। यहां नववर्ष पर उत्‍सव के रूप में दो दिन के ‘आदिवासी दिवस’ का आयोजन किया जाता है, जो पर्यटकों और आस पास के लोगों के लिए पिकनिक मनाने जैसा है। photo DAM

भंवर पहाड़ :

सिमडेगा में कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इनमें से एक है, भंवर एक चट्टानी पहाड़ी। कोलेबिरा खंड में स्थित भंवर पहाड़ी हरी-भरी वनस्पतियों और खेतों से भरी हुई है। कुछ नया अनुभव करने वाले जिज्ञासु इस स्थल पर आ सकते हैं। खासकर फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमी के लिए यह स्थल काफी ज्यादा मायने रखता है। 

यहां मधु मक्खियों के बहुत सारे छत्‍ते (भंवरवाड़ा) पाए जाते थे और इसे इस कारण भंवर पहाड़ कहा गया था। स्‍थानीय बुजुर्ग ने बताया कि प्राचीन युग में इन मक्खियों को सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहें तो यह प्रवेश मार्ग था और दुश्‍मन सेना आक्रमण के लिए आती थी, तब गुलेल से इन छत्‍तों को तोड़ दिया जाता, जिनसे मधु मक्खियां निकल दुश्‍मन की सेना पर टूट पड़तीं और उन्‍हें भागना पड़ता था। पहाड़ी पर छोटे घरों में रहने वाले ग्रामीणों को प्रकृति ने गुलतिची के फूल का उपहार दिया है।

भंवर पहाड़, जो पौराणिक विरासत का प्रतीक है। कहते हैं कि देश की आजादी से पहले तक युद्ध के दौरान शत्रुओं को मार गिराने में भंवर पहाड़ का अहम योगदान रहा था। जिला प्रशासन द्वारा भंवर पहाड़ की विरासत तथा पहाड़़ को पर्यटक स्थल के रूप में पहचान दिलाने हेतु अभिज्ञात किया गया है। भंवर पहाड़़ के मनोरम दृश्य को देखने एवं पहाड़़ की खासियत से जन-जन को अवगत कराने के उदेश्य से उसे संवारने का कार्य धरातल पर उतारा गया  है। हमारी यात्रा के दौरान शासन द्वारा भंवर पहाड़ के सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा था।

छोटी पहाड़ी पर पत्थरों के बीच एक छोटा प्राकृतिक तालाब मौजूद है। सभी मौसमों में पानी से भरा तालाब यह देखना आश्चर्य की बात है। भंवर पहाड़ पर गुफा के भीतर लगभग 15 से 16 डिग्री तापमान होने से, पर्यटक एक प्राकृतिक वातानुकूलित तंत्र महसूस करते हैं।

इसके अलावा अन्य खेलों के नाम पर फुटबॉल और क्रिकेट के लिए अल्बर्ट एकका स्टेडियम नाम का एक आउटडोर स्टेडियम भी है। सिमडेगा आने वाले पर्यटकों को स्टेडियम ज़रूर लाया जाता है। (एस्ट्रोटर्फ स्पोर्ट्स ग्रुप की एक अमेरिकी सहायक कंपनी है जो खेल में सतहों पर खेलने के लिए कृत्रिम टर्फ का उत्पादन करती है। मूल एस्ट्रोटर्फ उत्पाद 1965 में मोनसेंटो द्वारा आविष्कार किया गया एक शॉर्ट-पाइल सिंथेटिक टर्फ -तृखाच्छादित भूमि- था।)

यहां कैसे पहुंचेंगें ?

वायु मार्ग से : निकटतम हवाई अड्डा राउरकेला है, जहां से सिमडेगा की दूरी मात्र 50 कि.मी. है। इसके अलावा निकटतम प्रमुख हवाई अड्डा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा, रांची है। रांची से रामरेखा धाम लगभग 137 कि.मी. की दूरी पर है। यहां से, पर्यटक पूर्व-बुकिंग के आधार पर टैक्सी या सरकारी बसें ले सकते हैं। रामरेखा धाम पहुंचने में लगभग चार घंटे का समय लग सकता है।

रेल मार्ग से : निकटतम रेलवे स्टेशन राउरकेला, उड़ीसा में स्थित हैं, जो रामरेखा धाम से 95 कि.मी. की दूरी पर है।

सड़क मार्ग से : राम रेखा धाम सिमडेगा शहर से लगभग 26 कि.मी. दूर है। झारखंड के अलावा, छत्‍तीसगढ़ तथा ओडिशा राज्य सरकारों द्वारा भी नियमित बस सेवाएं संचालित की जाती हैं। निजी बस संचालकों की बसें भी पर्यटकों को आरामदायक यात्रा करने में मदद करती हैं। बस की सवारी भी पर्यटकों को चकित कर सकती है क्योंकि क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है।

 

खरीदारी : अच्छे दर्शनीय स्थलों की यात्रा और अन्य गतिविधियों के बाद, एक दिन कुछ थोड़ी खरीदारी करना स्वाभाविक है। सिमडेगा एक आदिवासी क्षेत्र है। अपने और परिवार या अपने दोस्तों के लिए यादगार स्‍वरूप स्मृति चिन्ह अथवा कोई अन्य उपहार खरीद सकते हैं। अत: यहां के प्रसिद्ध हस्‍तकला और हथकरघा के उत्‍पादों की खरीदारी के लिए दुकानों और बाजारों की सैर करने का अलग ही आनंद है।

 

सिमडेगा क्षेत्र में मई से अगस्‍त- सितम्‍बर तक मौसम गर्म और उमस भरा रहता है। वर्षा का मौसम भी दमघोटू और बादलों से घिरा हुआ होता है। कुल मिलाकर नवंबर से फरवरी तक मौसम सुहावना होता है। इसलिए यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी को माना जाता है।

*लेखक : कैप्टन प्राण रंजन प्रसाद भारतीय सेना के तोपखाना रेजिमेंट के भूतपूर्व अधिकारी हैं।

1971 के युद्ध में भाग लेने के बाद, 10 वर्षों तक सेना में रहे। तत्‍पश्‍चात, भारतीय पुरातत्व

सर्वेक्षण में बतौर मुख्‍य सुरक्षा अधिकारी एवं सूचना प्रौद्योगिकी एवं संपदा प्रबंधन प्रभारी रहे हैं।

पिछले कई वर्षों से 2021 तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एन सीआरटीसी) में सलाहकार।

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