एक और षड्यंत्र का पर्दाफाश…
हजारों साल से शूद्र या कहें कि दलित मंदिरों में पूजा करते आ रहे थे, पर अचानक 19वीं शताब्दी में ऐसा क्या हुआ कि दलितों को मंदिरों में प्रवेश नकार दिया गया?
- क्या इसका सही कारण आपको मालूम है? 2. सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली देते हो?
अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है? पहले यह काम पुजारी करते थे लेकिन मक्कार अंग्रेजों ने लूटपाट का षड्यंत्र किया था?
1932 में लोथियन कॉमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ. आंबेडकर नें अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने के जो उद्धरण पेश किए हैं, वो वही लिस्ट हैं जो अंग्रेजो ने भारत में कंगाल यानि गरीब लोगों की लिस्ट बनाई थी जो लोग मन्दिर में घुसने (Entry fee) देने के लिए अंग्रेजों के द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे!
षड़यंत्र: 1808 ई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे ले लिया और उन्हें पता था कि मुगलों ने मंदिरों में जाने पर तीर्थ यात्रा के नाम पर हिन्दूओं से कर वसूले जाते थे! फिर उन्हें भी यह कमाई का जरिया न लगे इसलिए हिन्दुओं के चार ग्रुप बनाए गए! इसमें से चौथा ग्रुप जो कंगाल था, उनकी एक लिस्ट जारी की जाती है!
1932ई. में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं तो वह ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं!
भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला। जिससे अरबों रूपए सीधे अंग्रेजो के खजाने में जमा हुए और इंग्लैंड पहुंचे। श्रद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था!
प्रथम श्रेणी: लाल जातरी (उत्तर के धनी यात्री),
द्वितीय श्रेणी: निम्नश्रेणी के जातरी यानि (दक्षिण के धनी यात्री),
तृतीय श्रेणी: भुरंग (यात्री जो दो रुपया दे सके),
चतुर्थ श्रेणी: पुंजा जातरी (कंगाल की श्रेणी जिनकी तलाशी लेने के बाद उनके पास दो रूपए भी नही मिलते थे)
चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं!
1.लोली यानि कुस्बी, 2.कुलाल यानि सोनारी, 3.मछुवा यानि मछुवारे, 4.नामसुंदर या चंडाल,5. घोस्की, 6.गजुर,7.बागड़ी, 8.जोगी, 9.कहार,10.राजबंशी,11.पीरैली, 12.चमार,13. डोम, 14.पौण,15. टोर,16. बनमाली,17. हड्डी आदि।
प्रथम श्रेणी से 10 रूपए! द्वितीय श्रेणी से 6 रूपए! तृतीय श्रेणी
से 2 रूपए और चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही!
अब जो पुंजा जातरी (कंगाल) की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था क्योंकि वो एन्ट्री फीस नही दे पाते थे। बिल्कुल ठीक वैसे ही जैसे आज आप ताजमहल/ लालकिला में बिना टिकट के नही जा सकते हैं ?
हिंदु समाज के उन लोगों को, जो उस समय 10 रूपए कर देते (या दे सकते थे), कोई प्रश्न नहीं किया जाता था और बिना कोई जाति पूछे अच्छे से आवभगत की जाती थी।
डॉ आंबेडकर ने अपनी लोथियन कॉमेटी रिपोर्ट में इसी लिस्ट का जिक्र किया है और कहा कि कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे!
बाद में वही कंगाल अंग्रेजों द्वारा और बाद में काले अंग्रेज कांग्रेसियों द्वारा षडयंत्र के तहत अछूत बना दिए गए! ताकि हिंदु समाज को विभाजित कर उन्हें बरगला कर धर्मांतरित किया जा सके…!!
हिन्दुओं के सनातन धर्म में छुआछुत मुख्य रूप से कभी थी ही नहीं।
यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओं के श्मशानघाट और चिता अलग अलग होती। और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते ?
लेकिन यह जातिवाद ईसाई और मुसलमानों में आज भी देखा है। इनमें जातियों और फिरकों के अनुसार अलग अलग चर्च और अलग अलग मस्जिदें हैं और अलग अलग कब्रिस्तान बने हैं। सनातनी हिन्दुओं में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जडतावाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 150 वर्षों से मुस्लिम और अंग्रेजी शासकों ने षडयंत्र से डाला है, ताकि विभाजित हिंदुओं पर शासन करनें में आसानी हो…
एकजुट हिंदुओं पर शासन विश्व की कोई भी प्रजाति के बस की बात नहीं है। जिस पर से कांग्रेस नाम के राजनीतिक दल ने पिछले 70 वर्षो तक अपनी राजनीति की रोटियां सेकीं और तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में रखे गए लोगों को जूते में दाल खिलाई!